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________________ स्थिति में इसकी क्रिया सामान्य से दुगुनी या तिगुनी हो जाती है जिससे शरीर को स्वस्थ होने में सहायता मिलती है। __हृदय-गति की दर विशेष पेशीजालों से बनी एक छोटी रचना (pacemaker) द्वारा नियंत्रित रहती है। इसकी स्थिति हृदय के दाहिने बाजू में ऊपर की ओर होती है। यह रचना रेडियो के एक छोटे प्रेषक की भाँति है जिसके द्वारा हृदय के ऊपरी कोष्ठों को संदेश भेजा जाता है। यहाँ से यह संदेश संपूर्ण स्नायविक तंतुओं में प्रसारित किया जाता है / अतः हृदय की गति इस विशेष रचना के प्रभावों से नियंत्रित रहती है। शरीर के किसी भी अंग-. विशेष की आवश्यकताओं का शासन इस रचना द्वारा होता है। किसी भी समय अंगों की आवश्यकता उसे प्रभावित कर सकती है। सम्पूर्ण शरीर में रक्त-संचार की क्रिया छोटी नलिकाओं की बृहत जालीदार रचनाओं द्वारा होती है / ये नलिकायें इतनी सूक्ष्म होती हैं कि उनमें से अधिकांश को बिना यंत्र के नहीं देखा जा सकता / यदि प्रत्येक के सिरे को एक-दूसरे से जोड़ा जाये तो ये इतनी लम्बी हो जायेंगी कि इन्हें पृथ्वी के चारों ओर दो बार लपेटा जा सकता है। शरीर में कछ अन्य नलिकायें भी हैं जिन्हें धमनियाँ कहते हैं। इनकी लम्बाई बहुत अधिक नहीं होती। ये अनेक शाखाओं तथा उपशाखाओं में विभाजित रहती हैं / इनकी सूक्ष्मतम उप-शाखाओं को केशवाहिनियाँ कहते हैं। अभिसरण-क्रिया का प्रारम्भ हृदय से होता हैं। यहाँ से रक्त धमनियों द्वारा केशवाहिनियों में भेजा जाता है। इस प्रकार जीवनदायक ओषजनवायुयुक्त रक्त-शरीर की प्रत्येक कोशा को पहुँचाया जाता है / तीव्र संकोचन की प्रत्येक क्रिया के उपरांत हृदय शिथिल या प्रसारित होता है तथा क्षणिक विश्रान्ति लेता है। इसी अवधि में महाधमनी का द्वार बंद हो जाता है और रक्त की तीव्र धारा का प्रवाह महाधमनी से दूसरी धमनियों में होता है / धमनियों की दीवारें लचीली होती हैं / अतः इनमें से होकर जब रक्त-प्रवाह छोटी- रक्त वाहिनियों में जाता है, तब ये अपना विस्तार कर लेती हैं। अपनी कलाई पर धीरे से अंगुलियों को रख कर इस नाड़ी-तरंग का अनुभव किया जा सकता रक्त की संचार-क्रिया अविरल बनाये रखने के लिये उसका प्रवाह निश्चित मात्रा के दाब पर होना आवश्यक है। हृदय के द्वारा इस नियम का उल्लंघन होने पर समस्त रक्त का जमाव पैरों में हो जायेगा तथा मस्तिष्क में वह कभी भी नहीं पहुँच सकेगा। 380
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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