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________________ 24 : डॉ० अशोक कुमार सिंह नमस्कार का माहात्म्य बताते हुए कहा गया है कि मरण काल में यदि एक भी तीर्थंकर नमस्कार किया गया हो तो वह श्रेष्ठ जिनों द्वारा संसारचक्र के उच्छेदन में समर्थ है। क्लिष्टकर्मवाला मेष्ठ (महावत) जिननमस्कार के पुण्य से कमलदल नाम का यक्ष उत्पत्र हुआ / नमस्कार, आराधना रूपी पताका के ग्रहण में हाथ सदृश है तथा जीव द्वारा सुगतिमार्ग पर गमन करने में रथ की तरह नष्ट नहीं होने वाला है / अज्ञानी गोप भी आराधना नमस्कार पूर्वक मृत होकर चम्पा में विख्यात श्रेष्ठिपुत्र सुदर्शन के रूप में उत्पन्न हुआ / जिसप्रकार भली प्रकार से उपयुक्त विद्या पिशाच को पुरुष के वश में कर देती है उसी प्रकार ज्ञान हृदयरूपी पिशाच को आराधकों के वश में कर देता है / जिसप्रकार कृष्णसर्प विधिपूर्वक प्रयुक्त मंत्र से शान्त हो जाता है उसीप्रकार ज्ञान के भलीप्रकार उपयोग से हृदयरूपी काला सर्प शान्त हो जाता है / जिसप्रकार बन्दर क्षणभर के लिए भी स्थिर नहीं होता उसीप्रकार मध्यस्थ के बिना मन स्थिर नहीं होता / इसलिए मनरूपी मर्कट को जिनोपदेश से आलम्बित कर सूत्र से बाँधकर शुभ ध्यान में रमण करना चाहिए / यव ऋषि ने यदि खण्डित श्लोकों से राजा की मृत्यु से रक्षा की तो सुश्रामण्य प्राप्त जिनोक्त सूत्र से क्या सम्भव नहीं है ? अथवा चिलातिपुत्र ने उपशम, विवेक, संवर, पद स्मरण मात्र से ज्ञान तथा अमरत्व प्राप्त किया / 11 इसके पश्चात विविध दृष्टान्तों एवं उपमाओं के द्वारा आराधक को तीनकरण, तीन योग से षनिकाय जीवों की हिंसा का त्याग करने, चतुर्विध प्रयत्न से सर्वप्रकार के असत्य वचनों का त्याग करने, अल्प हो या अधिक परद्रव्य हरण का त्याग करने, ब्रह्मचर्य की नव परिशुद्ध ब्रह्मगुप्तियों से नित्य रक्षा करने तथा आसक्ति एवं परिग्रह त्याग का उपदेश दिया गया है / तत्पश्चात् कहा गया है कि रात्रि-भोजन-त्याग, समिति और गुप्तियों से पंच महाव्रतों की रक्षा कर आराधक गारव को साधता है / 12 इसके पश्चात् इन्द्रिय-विषयों से विमुख रहने का उपदेश-इन्द्रियासक्त व्यक्तियों की दुर्दशा के दृष्टान्त पूर्वक निरूपित किया गया है / 13 सुपुरुष को चाहिये कि क्रोधादि विपाकों को जानकर गुणों से उनका निग्रह करे / क्रोध से नन्द, मान से परशुराम, माया से पाण्डु आर्या तथा लोभ से लोभनन्दी आदि विनाश को प्राप्त हुए। ___ इन उपदेशों से आह्लादित चित्त हो वह आराधक विनयपूर्वक निवेदन करता है कि आपके कहे अनुसार आचरण करूँगा।१४ इसके पश्चात् वेदना परिषह का उपदेश देते हुए यदि किसी प्रकार अशुभ कर्मोदय से शरीर में वेदना उत्पत्र हो अथवा प्यास आदि परिषहों की उदीरणा हो तो उसको विचलित न होने का उपदेश देना चाहिए / आराधना अभिसिद्ध केवलि के समक्ष और सर्वसंघको साक्षी मानकर किये गये प्रत्याख्यान को कौन भंग करता है / शृंगाली द्वारा खाये जाते हुए घोर वेदनात भी अवन्ती सुकुमाल ने आराधना को प्राप्त किया / मुद्गल गिरि पर सुकोशल व्याघ्र से खाये जाते हुए भी उत्तम अर्थ को प्राप्त हुए / गोष्ठ पर समाधिप्राप्त सुबन्धु, उपले के जलने पर जलते हुए चाणक्य आदि ने उत्तम समाधिमरण प्राप्त किया / क्षपक द्वारा अपने को धन्य मानना चाहिए कि इस समाधिमरण
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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