SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धवला : यह टीका षट्खण्डागम के पाँच खण्डों पर लिखी गई। टीकाकार आचार्य वीरसेन ने 72 हजार श्लोक प्रमाण प्राकृत मिश्रित संस्कृत में इसकी रचना की। इसका तीन चौथाई हिस्सा प्राकृत और एक चौथाई हिस्सा संस्कृत में है। धवला की मुख्य विशेषताएँ हैं" - कर्म सिद्धान्त का निरूपण, पूर्ववर्ती आचार्यों और समकालीन राजाओं का उल्लेख, दर्शनशास्त्र की मान्यताओं का समावेश, लोक-स्वरूप के विवेचन में नया दृष्टिकोण, अन्तर्मुहूर्त के सम्बन्ध में नई मान्यता, गणित-शास्त्र की विभिन्न प्रवृत्तियों का प्ररूपण, ज्योतिर्विज्ञान और निमित्त-ज्ञान की प्राचीन मान्यताओं का विश्लेषण, सम्यक्त्व के स्वरूप का विवेचन, भाषा और . कुभाषा का वर्णन, सांस्कृतिक तत्वों का प्राचुर्य, श्रुत-ज्ञान के पदों की संख्या का निरूपण, गुणस्थान और जीव-समासों का विवेचन इत्यादि। जय-धवला : आचार्य वीरसेन ने जय-धवला लिखना शुरू किया। बीस हजार श्लोक लिखने के बाद वे स्वर्गलोक सिधार गये। उनके शिष्य आचार्य जिनसेन ने चालीस हजार श्लोक और लिखकर ई. सन् 837 में इस टीका को पूर्ण किया। इस प्रकार इस ग्रन्थ में कुल 60 हजार श्लोक प्रमाण सामग्री है। कुन्दकुन्दाचार्य का साहित्य - शौरसेनी आगम साहित्य के सृजेताओं में आचार्य कुन्दकुन्द का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी तेईस रचनाएँ प्राप्त होती हैं। उनकी रचनाओं में निश्चयनय पर अधिक बल दिया गया है।' प्रवचनसार, समयसार और पंचास्तिकाय ये तीन विशाल ग्रन्थ अध्यात्म-त्रयी के रूप में विख्यात है। . प्रवचनसार : इस ग्रन्थ में तीन अधिकार है - ज्ञान, ज्ञेय और चारित्र / ज्ञानाधिकार में आत्मा और ज्ञान का एकत्व, अन्यत्व, सर्वज्ञ की परिभाषा, इन्द्रिय और अतिन्द्रिय सुख, अशुभ, शुभ और शुद्ध उपयोग एवं मोहक्षय आदि का विवेचन है। ज्ञेयाधिकार में द्रव्य, गुण, पर्याय का स्वरूप, सप्तभंगी, ज्ञान, कर्म और कर्मफल, चेतना का स्वरूप, मूर्त-अमूर्त द्रव्यों के गुण, जीव का लक्षण, जीव और पुद्गल का सम्बन्ध, निश्चय और व्यवहार आदि पर विचार किया गया है। चारित्राधिकार में श्रमण चर्या और आचार संहिता व मोक्ष तत्व पर विमर्श है।। समयसार : अध्यात्म प्रधान इस ग्रन्थ की तुलना उपनिषद्-साहित्य से की जाती है। समय बहुत अर्थपूर्ण शब्द है। काल, पदार्थ और आत्मा इसके मुख्य अर्थ हैं। समयसार आत्मा के सार पर केन्द्रित है। इसमें आत्मा और अनात्मा के (26)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy