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________________ भेद-विज्ञान को स्पष्ट किया गया है। जीवाजीव, कर्तृकर्म, पुण्य-पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष, सर्व विशुद्ध ज्ञान और अनेकान्त दृष्टि से आत्म-स्वरूप का विवेचन इन दस अधिकारों का इस ग्रन्थ में वर्णन हैं।" पंचास्तिकाय : विश्व की संरचना छः द्रव्यों से मिलकर हुई। कालद्रव्य को छोड़कर शेष पाँच द्रव्य - जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश; अस्तिकाय के अन्तर्गत परिगणित किये जाते हैं, क्योंकि ये बहप्रदेशी द्रव्य होते हैं। दो अधिकारों में विभक्त इस ग्रन्थ के प्रथम अधिकार में द्रव्य, गुण और पर्याय का विवेचन तथा द्वितीय अधिकार में पुण्य, पाप, जीव, अजीव, आश्रव, बन्ध संवर, निर्जरा और मोक्ष तत्वों का वर्णन है। आचार्य कुन्दकुन्द के अन्य ग्रन्थों में नियमसार, द्वादशानुप्रेक्षा, दर्शन प्राभृत, चारित्र प्राभृत, सूत्र प्राभृत, बोध प्राभृत, भाव प्राभृत, मोक्ष प्राभृत, लिंग प्राभृत शील प्राभृत, सिद्ध-भक्ति, श्रुत भक्ति, चारित्र भक्ति, योग भक्ति, आचार्य भक्ति, निर्वाण भक्ति, पंचगुरु भक्ति, कोरसामि, स्तुति, रयणसार आदि प्रमुख है। इस प्रकार आचार्य कुन्दकुन्द का योगदान न सिर्फ जैन दर्शन के लिए अपितु सम्पूर्ण भरतीय दर्शन, संस्कृति, अध्यात्म और भाषा के लिए भी अनुपम है। द्रव्य, गुण और पर्याय में उन्होंने विश्व के सभी पदार्थों का समावेश कर दिया। आगम ग्रन्थों में उल्लेखित निश्चय और व्यवहार की अवधारणा को उन्होंने नवीन अर्थ और विस्तार दिया। शौरसेनी आगम साहित्य के सृजेताओं में कुन्दकुन्दाचार्य के अलावा आचार्य यतिवृषभ, वट्टकेर, शिवार्य, नेमीचन्द्र, कुमार कार्तिकेय आदि नाम प्रमुख हैं। इन मनीषियों के ग्रन्थों का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है। अन्य ग्रन्थ त्रिलोक प्रज्ञप्ति : तिलोय पण्णत्ति में तीन लोक के स्वरूप, आकार, प्रकार, विस्तार, क्षेत्रफल, परिवर्तन आदि का वर्णन है। आचार्य यतिवष्षभ रचित इस ग्रन्थ में पुराण और भारतीय इतिहास विषयक सामग्री भी प्राप्त होती है। नौ महाधिकारों में विभक्त इस ग्रन्थ में प्राचीन खगोल-भूगोल सम्बन्धी जानकारियों का समावेश है। मूलाचार : इस ग्रन्थ की रचना आचार्य वट्टकेर ने की। पं. जुगल किशोर मुख्तार आचार्य कुन्दकुन्द को ही वट्टकेर मानते हैं। परन्तु अन्य विद्वान मुख्तार से . सहमत नहीं हैं। निःसन्देह वे स्वतन्त्र आचार्य है। दक्षिण भारत के बेट्टकेरी स्थान (27)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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