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________________ जीवों की संख्या के न्यूनाधिक्य का विवेचन है। आठ प्ररूपणाओं के अतिरिक्त जीवस्थान में नौ चूलिकाएँ हैं - समुत्कीर्तन, स्थान समुत्कीर्तन, प्रथम महादण्डक, द्वितीय महादण्डक, तृतीय महादण्डक, उत्कृष्ट स्थिति, जघन्य स्थिति, सम्यक्त्वोत्पति एवं गत्यागति। प्रथम खण्ड सत्रह अधिकारों में विभाजित है। इसमें कुल 2375 सूत्र हैं। 2. क्षद्रकबन्ध : मार्गणा स्थानों के अनुसार कौनसा जीव बन्धक और कौनसा अबन्धक है, इसका विवेचन इस खण्ड में है। इसमें तेरह अधिकार और ग्यारह अनुयोग हैं। कुल 1582 सूत्र हैं। कर्म सिद्धान्त की दृष्टि से यह उपयोगी है। 3. बन्धस्वामित्व विचय : कौनसे गुणस्थानवर्ती और मार्गणावर्ती जीव कौनसे कर्मबन्ध करते हैं, इसका इसमें वर्णन है। कुल 324 सूत्र हैं। 4. वेदना खण्ड : इस खण्ड में 1449 सूत्र है। इसमें कृति और वेदना इन दो अनुयोगो के माध्यम से कर्म सिद्धान्त का निरूपण है।। 5. वर्गणा खण्ड : इसमें स्पर्श, कर्म और प्रकृति नामक अनुयोग द्वारों का प्रतिपादन किया गया है। इन तीन अनुयोग द्वारों में क्रमश: 63, 31 और 142 सूत्र है। इनमें कर्म-बन्ध, बन्धक और बन्धनीय पर विचार किया गया है। 6. महाबन्ध : कर्म-बन्ध के चार भेद हैं - प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश। महाबंध में इन चारों पर इतने विस्तार से विवेचन है कि यह एक स्वतन्त्र ग्रन्थ माना जाता है। यह खण्ड 3000 श्लोक प्रमाण है जबकि इससे पूर्व के सभी पाँच खण्ड 6000 श्लोक प्रमाण हैं। कषाय पाहुड : आचार्य गुणधर रचित इस ग्रन्थ का दूसरा नाम 'पेज्जदोसपाहंड' भी है। डॉ. नेमी चन्द्र शास्त्री के अनुसार ग्रन्थ का रचनाकाल ईस्वी की.प्रथम शती है। 180 मूल और 53 भाष्य गाथाओं को मिलाकर इसमें कुल 233 सूत्र गाथाएँ हैं। यह ग्रन्थ सोलह अधिकारों के माध्यम से सिद्धान्त की व्याख्या करता है। __ शौरसेनी आगम ग्रन्थों पर समय-समय पर अनेक टीकाओं की रचना हुई। विषय और विस्तार की दृष्टि से इन टीकाओं का महत्व व स्थान स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसा है। यहाँ षट्खण्डागम पर लिखी ख्यात टीकाएँ धवला और जय-धवला का परिचय प्रस्तुत है। (25)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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