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________________ बातें मूल आगम ग्रन्थों से मेल नहीं खाती है। आचार्य हरिभद्रसूरि इस ग्रन्थ के उद्धारक माने जाते हैं। जीत-कल्प : इसके रचनाकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण हैं। इसमें 103 गाथाएँ हैं। ओघ-नियुक्ति : इसमें श्रमणों के आचार विचार का प्रतिपादन है इसलिए कहीं इसे मूल सूत्र और कहीं छेद सूत्र के अन्तर्गत माना जाता है। आचार्य भद्रबाहु ने इसकी रचना की तथा अनेक विज्ञों की राय में यह आवश्यक नियुक्ति का ही एक भाग है। इसमें 811 गाथाएँ हैं। पिण्ड-नियुक्ति : आचार्य भद्रबाहु ने इसकी रचना की तथा इसमें 671 गाथाएँ हैं। इसमें श्रमणों की आहार चर्या पर चिन्तन किया गया है। ऋषिभाषित : इसे अर्धमागधी आगम साहित्य का प्राचीनतम ग्रन्थ माना जाता है। यह ग्रन्थ आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध का किंचित परवर्ती तथा सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन व दशवैकालिक जैसे प्राचीन आगम ग्रन्थों की अपेक्षा पूर्ववर्ती सिद्ध होता है। भाषा, इतिहास और संस्कृति की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें धार्मिक उदारता का अनूठा दिग्दर्शन है। ऋषिभाषित न सिर्फ जैन संस्कृति अपितु समग्र भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है।24 नियुक्ति-साहित्य ... मूल आगमों और प्रकीर्णकों पर मनीषी आचार्यों द्वारा विपुल साहित्य की रचना की गई। यह व्याख्यात्मक साहित्य एक लम्बे काल-खण्ड की सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक आदि घटनाओं और विषयों पर विपुल महत्वपूर्ण सामग्री जुटता है। व्याख्या साहित्य में नियुक्ति, भाष्य और चूर्णि के अलावा संस्कृत टीकाएँ तथा लोक भाषा में रचित सामग्री का समावेश किया जाता है। नियुक्तियों के मुख्य रचनाकार आचार्य भद्रबाहु हैं। उन्होंने आचारांग, सूत्रकृतांग, आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, दशाश्रुतस्कन्ध, बष्हत्कल्प, व्यवहार और अन्य ग्रन्थों पर नियुक्तियाँ लिखीं। आचार की दृष्टि से कुछ नियुक्तियाँ इतनी महत्वपूर्ण है कि वे आगम साहित्य में स्वतन्त्र रूप से प्रतिष्ठित हो गई, जैसे पिण्ड-नियुक्ति और ओघ-नियुक्ति / मूल ग्रन्थों के भावार्थ और रहस्य को जानने ... के लिए नियुक्ति-साहित्य का बहुत महत्व है। (19)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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