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________________ भाष्य-साहित्य नियुक्तियों के बाद भाष्यों की रचना हुई। मूल ग्रन्थों और नियुक्तियों पर भाष्य साहित्य की रचना हुई। भाष्यों में शब्दों व विषयों का विस्तृत विवेचन प्राप्त होता है। भाष्य साहित्य में विभिन्न प्राकृतों के विशिष्ट प्रयोग मिलते हैं। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण और संघदासगणी मुख्य भाष्यकार हुए हैं। इन भाष्यकारों के प्राकृत गाथाओं में आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, बृहत्कल्प, पंचकल्प, व्यवहार, . निशीथ, जीतकल्प, ओघ नियुक्ति, पिण्ड नियुक्ति आदि पर भाष्य उपलब्ध होते हैं / भाष्य साहित्य में एक दीर्घ कालखण्ड की प्रचुर धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक और राजनैतिक जानकारी हमें प्राप्त होती है। जैन परम्परा और प्राचीन भारतीय आर्थिक परिदृश्य को जानने समझने के लिए भाष्य साहित्य का गम्भीर अध्ययन आवश्यक है। इस सहित्य में प्राचीन अनुश्रुतियाँ, लौकिक कथाएँ और परम्परागत प्राचीन आचार-विचार का विशद् विवेचन हमें मिलता है। मूल ग्रन्थों और नियुक्तियों की तरह भाष्य की भाषा भी मुख्य रूप से अर्द्धमागधी है। चूर्णि-साहित्य नियुक्तियों और भाष्यों के पश्चात् आगमों पर चूर्णियाँ लिखी गईं। चूर्णिसाहित्य प्राकृत और संस्कृत मिश्रित प्राकृत में रचा गया। जिसमें संस्कृत कम और प्राकृत अधिक है। अभिधान राजेन्द्र कोश में चूर्णि की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि जिसमें अर्थ की बहुलता हो, महान अर्थ हो; हेतु, निपात और उपसर्ग से युक्त हो, गम्भीर हो, अनेक पदों से सम्बन्धित हो, जिसमें अनेक गम (जानने के उपाय) हों और जो नयों से शुद्ध हो, उसे चूर्णि समझना चाहिये नियुक्ति और भाष्य की भाँति चूर्णि-साहित्य भी सभी आगम ग्रन्थों पर नहीं मिलता हैं। आचारांग, सूत्रकृतांग, व्याख्या-प्रज्ञप्ति, जीवाभिगम, निशीथ, महानिशीथ, आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, पंचकल्प, जीतकल्प, ओघनियुक्ति, व्यवहार, नन्दी, अनुयोगद्वार, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थों पर चूर्णियाँ लिखी गईं जिनदासगणि महत्तर ने सर्वाधिक चूर्णि साहित्य की रचना की। चूर्णियाँ सरल सुबोध भाषा में है तथा इनमें भी तत्कालीन जीवन और समाज की प्रचुर सामग्री है।" टीका साहित्य आगम, नियुक्ति और भाष्य प्राकृत में रचित है। चूर्णियाँ मुख्य रूप से प्राकृत और गौण रूप से संस्कृत में रचित है। टीकाएँ संस्कृत में रचित है। वह (20)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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