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________________ समूह में रहने वाले श्रमण श्रमणियों के आचार तथा श्रमण और श्रमणियों के बीच आचारगत मर्यादाओं का वर्णन है। 8. गणिविद्या : ज्योतिर्विज्ञान की दृष्टि से यह ग्रन्थ महत्वपूर्ण है। 82 गाथाओं में दिवस, तिथि, नक्षत्र, करण, ग्रह, मुहूर्त, शकुन, लग्न और निमित्त इन नौ विषयों का विवेचन है। देवेन्द्रस्तव : 307 गाथाओं के इस प्रकीर्णक में बत्तीस देवेन्द्रों का विस्तृत वर्णन है। देवताओं, देवलोक तथा जैन खगोल-भूगोल का परिचय इस ग्रन्थ से प्राप्त होता है। ग्रन्थ की मूल गाथाओं में रचनाकार के रूप में ऋषिपालित का उल्लेख है। देवेन्द्रस्तव का रचना-काल ईस्वीपूर्व प्रथम शताब्दी के आसपास 10. मरण-समाधि : मरण विभक्ति, मरण विशोधि, मरण समाधि, संलेखना श्रुत, भक्त परिज्ञा, आतुर प्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान और आराधना इन आठ प्राचीन श्रुतस्कंधों के आधार पर इस प्रकीर्णक की रचना हुई। यह सबसे बड़ा प्रकीर्णक है। 11. चन्द्रवेध्यक : इसमें विनय, आचार्य गुण, शिष्य गुणं, विनय निग्रह गुण, ज्ञान गुण, चरण गुण और मरण गुण इन सात विषयों का विस्तार से विवेचन है। ग्रन्थ में अप्रमाद का उपदेश है। 175 गाथाएँ हैं। 12. वीरस्तव : 43 गाथाओं में भगवान महावीर की स्तुति की गई है। महावीर के अन्य अनेक नाम इस ग्रन्थ में प्राप्त होते हैं। इन प्रकीर्णकों के अलावा अन्य अनेक प्रकीर्णकों के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं। यथा - तित्थोगाली, अजीव कल्प, सिद्ध पाहुड, आराधना पताका, द्वीप सागर प्रज्ञप्ति, ज्योतिष्करण्डक, अंगविद्या, तिहिपइण्णग, सारावलि, पर्यन्ताराधना, जीवविभक्ति, कवच प्रकरण, जोणि पाहुड आदि।धर्म, दर्शन, अध्यात्म, जीवनमूल्यों की चर्चा के साथ-साथ तत्कालीन समाज की प्रतिच्छवि भी इन ग्रन्थों में मिलती है। आगम और व्याख्या साहित्य के बीच कड़ी के रूप में प्रकीर्णकों का महत्व है। अन्य कुछ महत्वपूर्ण ग्रन्थों का परिचय भी यहाँ दिया जा रहा है। महानिशीथ : छः अध्ययन और दो चूलाओं के इस ग्रन्थ में 4554 श्लोक प्रमाण पाठ है। नन्दी में उल्लेखित महानिशीथ से यह भिन्न है। इसकी अनेक (18)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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