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________________ 100 करोड़ से अधिक लोग गन्दा पानी पीने को मजबूर है। एक को शुद्ध पेय-जल उपलब्ध नहीं है, दूसरा उसकी फिजूलखर्ची कर रहा है। ये हिंसा के अर्थतन्त्र के परिणाम है कि पूरा पर्यावरण-तन्त्र चरमरा गया है। .. 3. वनस्पति : स्थूल वनस्पति के दो भेद - प्रत्येक शरीरी और साधारण शरीरी। प्रत्येक शरीरी के बारह प्रकार हैं - वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, तृण, लतावलय, पर्वग, कुहुण, जलज, औषधितृण और हरितकाय साधारण वनस्पति के अन्तर्गत कन्द, मूल आदि आते हैं। वाणिज्यिक प्रहारों से वनस्पतियों के अभाव के साथ जैव विविधता का संकट गहराता जा रहा है। वनस्पति के आश्रय में भी अनेक प्रकार के त्रस-स्थावर जीव रहते हैं। वनस्पति के संरक्षण से अनेक जीवों का संरक्षण सम्भव है। 4. अग्नि : स्थूल अग्नि के भी अनेक भेद बताये गये हैं - अंगार, मुर्मुर, शुद्ध, अग्नि, अर्चि, ज्वाला, उल्का, विद्युत आदि।' अग्नि का विनाशक प्रयोग नहीं करना चाहिये। 5. वायु : स्थूल वायुकायिक जीवों के छः भेद हैं - उत्कलिका, मण्डलिका, घनवात, गुंजावात, शुद्धवात और संवर्तक वात। वायु संरक्षण के लिए निम्न उपाय किये जाने चाहिये - 1. नाना प्रकार की वनस्पतियों का रोपण। 2. पर्वतों पर विस्तार युक्त विशाल पेड़ पौधों का रोपण। 3. पठारों की सुरक्षा। 4. वन सम्पदा की सुरक्षा। 5. हानिकारक रासायनिक पदार्थों की समाप्ति। 6. वाहनों व रासायनिक संयंत्रों से निकलने वाले धुएँ पर नियन्त्रण। निजी वाहनों पर लोगों की निर्भरता घटना। 7. उद्योगों की स्थापना प्रदूषण से मुक्त हो।" स्थूल जीवों की आगम वर्णित जानकारी से यह प्रेरणा मिलती है कि पर्यावरण और प्रकृति की रक्षार्थ स्थावरकायिक जीवों की हिंसा से बचना नितान्त आवश्यक है। आचारांग सूत्र में स्थावरकायिक जीवों की रक्षा की प्रबल प्रेरणा दी गई है। स्थावर और त्रस सभी प्रकार के जीव परस्पर एक दूसरे के आश्रित होते हैं। (274)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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