SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के द्वारा मन्द, मन्दतर और समाप्त कर सकता है। ठीक इसी प्रकार शुभ कर्मों के फल को अधिक लाभकारी बना सकता है। यह सिद्धान्त पुरुषार्थ द्वारा भाग्य में सकारात्मक परिवर्तन की वैज्ञानिक और दार्शनिक व्याख्या करता है। कर्मबन्ध के पाँच कारण __ कर्मबन्ध के पाँच कारण बताये हैं - मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद कषाय और योग। इनका अर्थशास्त्रीय विवेचन इस प्रकार है - 1. मिथ्यात्व : अयथार्थ ज्ञान और विपरीत मान्यताएँ मिथ्यात्व है। भगवान महावीर ने वैनयिक मिथ्यात्व के अन्तर्गत रुढ़ियों और कर्मकाण्डों को भी मिथ्यात्व कहा है। व्यावसायिक जीवन में नवोन्मेष और नवाचार इससे बाधित होते हैं। एकान्त मिथ्यात्व से जीवन की सर्वपक्षीय सोच विकसित नहीं हो पाती है। 2. अव्रत : प्रतिज्ञाहीन जीवन जीना। इससे नागरिक अनुशासन घटता है और . आर्थिक अराजकताएँ बढ़ती हैं। 3. प्रमाद : आलस्य और असजगता जीवन की अवनति के प्रत्यक्ष कारण हैं। जो चौकन्ना नहीं है, वह विपन्न हो जाता है। आलसी के गुण भी दोष में परिणत हो जाते हैं। 4. कषाय : क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय हैं। कषायों से व्यक्ति में तीव्र दुर्भाव पैदा होते हैं। ऐसे दुर्भावों में किये गये दुष्कर्म व्यक्ति को दीर्घ-काल तक दु:ख देते हैं। कषाय-त्याग से व्यवसाय-वृद्धि और जीवन की सम्पन्नता का सीधा रिश्ता है। 5. योग : जैन दर्शन में मन, वचन और शरीर को योग कहकर जीवन में इन तीनों ..की अपरिमित शक्तियों के पूर्ण सदुपयोग की बात कही है। गीता के कर्म, ज्ञान और भक्ति रूप त्रियोग की विधिवत् साधना के लिए जैन दर्शन के इन तीनों योगों को साधना बहुत जरूरी है। आठ कर्म उपर्युक्त पाँच कारणों से अनन्त प्रकार के कर्मों का बन्ध जीव करता हैं। उनमें आठ मुख्य हैं। इन आठ कर्मों की अर्थशास्त्रीय प्रेरणाएँ इस प्रकार हैं - 1. ज्ञानावरणीय : ज्ञान जीवन और जगत को प्रकाशित करता है। ऐसे पवित्र ज्ञान और उस ज्ञान की आराधना करने वालों की कभी अवहेलना नहीं करनी (259)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy