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________________ नयवाद . नैगम नय के अन्तर्गत सामान्य और विशेष का संयुक्त रूप से निरूपण किया जाता है। कभी सामान्य को मुख्य माना जाता है, कभी विशेष को और कभी दोनों को मुख्य माना जाता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में अधिकतर आर्थिक नीतियाँ नैगम नय के आधार पर ही तय की जाती है। सामान्य अथवा अभेद का ग्रहण करने वाली दृष्टि संग्रह नय है। लोकतन्त्रीय प्रणाली संग्रह नय के आधार पर संचालित होती है। इसकी तुलना समष्टि-अर्थशास्त्र के नियमों से की जा सकती है। व्यवहार नय के माध्यम से व्यष्टि-अर्थशास्त्र को समझा जा सकता है। ऋजुसूत्र नय में वर्तमान को महत्व दिया जाता है। आपदा-प्रबन्धन के तहत किसी को तत्काल राहत देने के लिए इस नय की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। समाज में शब्द और शब्दों के अर्थ समय के साथ बदल भी जाते हैं अथवा समय के अनुरूप उन्हें बदलना ठीक रहता है या ठीक नहीं रहता है। इस सबकी व्याख्या शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूतनय करते हैं। समाज में शब्दों का सदुपयोग व दुरुपयोग तथा अर्थ का उत्कर्ष, अपकर्ष व परिवर्तन होता रहता है अथवा किया जाता है। आर्थिक-जगत् में शब्द और शब्दार्थ परिवर्तित करके उपभोक्ता और उपभोक्ता समूह को भ्रमित करने के बहुत प्रयास हुए हैं। मसलन अण्डे को 'शाकाहारी' कह कर भाषा, संस्कृति और शाकाहारी-समुदाय के साथ बहुत बड़ा छल किया गया। शब्द एकार्थक अथवा अनेकार्थक हो सकते हैं। उनका प्रयोग * निर्धान्त होना चाहिये। प्रबन्ध में अनेकान्त - कोई भी व्यक्ति या देश अपने उचित-अनुचित हितों के लिए पूर्वाग्रह रखता है। उन्हीं पूर्वाग्रहों से आर्थिक नीतियाँ बनाता और दूसरों पर भी थोपना चाहता है। अनेकान्त-दृष्टि सर्वमंगलकारी है। वह व्यक्ति या देश को पूर्वाग्रह और दुराग्रह से मुक्त होने का सन्देश देती है। अनेकान्त विविध घटकों में समन्वय, सामंजस्य और सन्तुलन स्थापित करने में अत्यन्त उपयोगी है। जैसे धनोपार्जन के साधनों में भूमि, श्रम, पूंजी, प्रबन्ध, व्यावसायिक उपकरण आदि में सर्वलाभकारी सामंजस्य स्थापित करना। प्रबन्ध के अनेक घटक होते हैं - नियोजन, नियन्त्रण, संगठन, अभिप्रेरणा आदि। इसके अलावा वित्तीय, कार्मिक, उत्पादन, विपणन आदि क्षेत्रों का अलग-अलग प्रबन्ध आवश्यक होता है। अनेकान्त इन सब में सामंजस्य की (255)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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