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________________ अवस्थाओं को एक सुनिश्चित क्रम में निबद्ध कर पाने के आग्रह के कारण ही अधिकतर समस्याएँ पैदा होती हैं। सेन के अनुसार यदि अन्यान्य कसौटियों के आधार पर निर्धारित क्रमिकताओं के साझे लक्षण सूत्रों का सहारा लेकर एक समन्वित-क्रम का निरूपण अधिक उपयोगी होगा। वे लिखते हैं - 'विषमता मापन के तथ्यों और आदर्शों का समन्वित चिन्तन ही हमें उचित मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।' 'गरीबी और अकाल' पुस्तक में उन्होंने अभाव को सापेक्ष मानते हुए उसके निराकरण के अर्थशास्त्रीय सूत्र दिये हैं। ___ अर्थशास्त्र के इतिहास में देश काल के अनुसार अनेक विचार, विधियाँ और व्यवस्थाएँ आईं। अर्थशास्त्र की अनेक परिभाषाएँ दी गईं। वे इतनी हो गईं कि परिभाषाओं को लेकर वाद-विवाद चलता रहा। फिर अर्थशास्त्रियों ने कहा कि विभिन्न सामाजिक विज्ञानों में केवल सहकार्यता ही नहीं, बल्कि उनका परस्पर विलीनीकरण भी होना चाहिये। आर्थिक समस्याओं को भली-भाँति समझने के लिए समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, इतिहास, कानून, आचारशास्त्र, एवं मनोविज्ञान जैसे सभी सामाजिक विज्ञानों पर होने वाले परिवर्तनों को ग्रहण करना अनिवार्य है। संसार में पूंजीवाद के विपरीत परिणाम आने लगे तो साम्यवाद भी सफल नहीं हुआ। आज भारत सहित विश्व के अनेक देशों में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया है। यह बात अलग है कि विद्यमान व्यवस्था भी कितनी अमिश्रित अथवा एकांगी है। अनेकान्त का आधार है कि वस्तु अनन्त धर्मात्मक होती है। यह बहुआयामिता अनेकान्त है। इसे समझने के लिए जिस शैली का प्रयोग किया जाता है वह स्याद्वाद है। स्याद्वाद की सप्तभंगियाँ बताई गई हैं। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में जैन दर्शन की इस सप्तभंगी की चर्चा की है। वस्तु, स्थिति, घटना, नियम, विधि, निषेध आदि को अपने-अपने परिप्रेक्ष्य और सन्दर्भो में देखा जाना चाहिये। एक वस्तु एक व्यक्ति या समुदाय के लिए आवश्यकता है तो वही वस्तु दूसरे व्यक्ति या समुदाय के लिए विलासिता हो जाती है। बाजारवादी व्यवस्था वाले विलासिता को भी आवश्यकता के रूप में थोपने के लिए आमादा रहते हैं। उन्हें व्यष्टि और समष्टि पर पड़ने वाले तात्कालिक और दूरगामी परिणामों की तनिक चिन्ता नहीं है। स्याद्वाद का नयवाद ऐसी समस्त स्थितियों और विधिनिषेधों की विवेकसम्मत समीक्षा करता है। (254)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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