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________________ सन्दर्भो का उल्लेख हुआ है। आनन्द आदि श्रावकों का लम्बा-चौड़ा व्यवसाय है और उनके पास अपार वैभव है। सभी तीर्थंकर महावीर से अणुव्रत, शिक्षाव्रत और गुणव्रत ग्रहण करते हैं। व्रतों के अनुसार अपना जीवन यापन करते हैं। मितव्ययिता और उदारता, कर्म और धर्म, त्याग और भोग, राग और विराग आदि का उनके जीवन में अद्भुत सुमेल था। उपासकदशांग से स्पष्ट होता है कि भगवान महावीर ने एक व्रती समाज की आधारशिला रखी थी। उससे क्रान्तिकारी सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक उत्कर्ष हुआ था। उसका प्रभाव आज भी है। व्रत-नियमों से चलने वाले विपुल भौतिक और आध्यात्मिक वैभव के स्वामी बन जाते हैं। विपाक सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में सुबाहुकुमार, भद्रनन्दी, सुजात आदि का जीवन भी व्रतों से ओतप्रोत था। एक शोषण-मुक्त श्रम आधारित उन्नत अर्थ-व्यवस्था आगम-युग में जन्म ले रही थी। उसके सूत्रधार तीर्थंकर महावीर थे। ___ इस प्रकार आगम ग्रन्थों में अनेक कथाएँ, चरित्र, दृष्टान्त, उदाहरण आदि मिलते हैं, जिनका अर्थशास्त्रीय अध्ययन हमें कई जानकारियाँ देता हैं। आगमोत्तर काल में भी तरंगवती, समराइच्चकहा, कुवलयमाला जैसी कालजयी कथाएँ लिखी गईं और अनेक कथाकोश रचे गये। जिनमें तत्कालीन समय के आर्थिक-सामाजिक जीवन के बारे में अनेक अज्ञात-अल्पज्ञात जानकारियाँ मिलती हैं। पेथड़शाह, जगडूशाह, भामाशाह जैसे साढ़े चौहत्तर शाह जैन समाज में प्रसिद्ध हैं। जिनके चरित्रों का आर्थिक पक्ष अत्यन्त उज्ज्वल और प्रेरक रहा है। (170)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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