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________________ समुद्रपालीय मूल आगम ग्रन्थ उत्तराध्ययन के इक्कीसवें अध्ययन के अनुसार अंगदेश की चम्पापुरी में पालित नाम का एक समुद्र व्यापारी था। वह भगवान महावीर का शिष्य था। वह जलयानों में भरकर माल विदेशों में ले जाता और लाता। उसका आयात-निर्यात का विस्तृत व्यापार था। एक बार वह व्यापार के लिए समुद्र के तटवर्ती पिहुण्ड नगर पहुँचा। व्यापारिक उद्देश्यों से उसे उस नगर में कुछ अधिक समय तक रुकना पड़ा। उसकी प्रामाणिकता, नीतिपरायणता, व्यापार-निपुणता और व्यवहार-कुशलता से प्रभावित होकर पिहुण्ड नगर के एक श्रेष्ठी ने अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया। पालित जब उसकी नव-विवाहिता के साथ पुनः चम्पानगरी लौट रहा था, तब समुद्र में, जलयान में ही उसकी पत्नी ने एक सर्वांग सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। समुद्र में जन्म होने से उसका नाम समुद्रपाल रखा गया। समुद्रपाल युवा हुआ और बहत्तर कलाओं में निष्णात हुआ। बाद में निमित्त मिलने पर समुद्रपाल दीक्षा ले लेता है। इस कथा की निम्नांकित आर्थिक निष्पत्तियाँ हैं - 1. आगम ग्रन्थों की इन कथाओं से प्राचीन भारतीय जहाजरानी पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। * 2. अगणित जोखिमों के बावजूद विदेशी व्यापार खूब किया जाता था। . 3. व्यापार में प्रामाणिकता। 4. तत्कालीन सामाजिक परम्पराओं की सूचना प्राप्त होती हैं। जैसे - आडम्बररहित विवाह और जातिगत भेदों की उपेक्षा / इनके सुप्रभाव लोगों की आर्थिक दशा और सामाजिक सौहार्द्र पर होते थे। उपासकदशांग के दस श्रावक उपासकदशांग सातवाँ अंग आगम है। इसमें ई. पू. 600 का सजीव सांस्कृतिक चित्रण है। आनन्द और अन्य श्रावकों का जीवन तत्कालीन व्यापार, वाणिज्य और व्यवसाय पर प्रकाश डालता है। राजा, ईश्वर, तलवर आदि नाम राज्याधिकारियों के परिचायक हैं। चम्पा, राजगृह आदि नगरों एवं राजाओं के नाम, मगध तथा आसपास के जनपदों का भौगोलिक और व्यावसायिक परिचय देते हैं।' प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में अनेक स्थलों पर उपासकदशांग के आर्थिक महत्व के (169)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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