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________________ विमध्यमशक्तिपुरुषविषयमेतत् सूत्रमिति चेत् / न, अविशेषेणोक्तत्वात्, सर्वविशेषविषयत्वस्य च युक्त्यनुपपन्नत्वात्, न हि प्रकृष्टमतेरपि शब्दधर्मिणमगृहीत्वोत्तरोत्तरबहुसुधर्मग्रहणसंभवोऽस्ति, निराधारधर्माणामनुपपत्तेः॥ इति गाथार्थः // 269 // किञ्च, समयमात्रेऽपि 'शब्दः' इति विशेषविज्ञानमभ्युपगच्छतोऽन्येऽपि समयविरोधादयो दोषाः। के पुनस्ते?, इत्याह अत्थोग्गहो न समयं, अहवा समओवओगबाहुल्लं। सव्वविसेसग्गहणं, सव्वमई वोग्गहो गिज्झो॥२७०॥ एगो वाऽवाओ च्चिय, अहवा सोऽगहिय-णीहिए पत्तो। उक्कम-वइक्कमा वा, पत्ता धुवमोग्गहाईणं // 271 // सामण्णं च विसेसो, सो वा सामण्णमुभयमुभयं वा। न य जुत्तं सव्वमियं,(वा) सामण्णालंबणं मोत्तुं॥२७२॥ कथन भी संगत नहीं, क्योंकि (आपके मत को मान लेने पर) 'किन्तु वह यह नहीं जानता कि कौनसा शब्द है' इत्यादि सूत्रांश अर्थहीन (असंगत) हो जाएगा। यह सूत्र मध्यम शक्ति वाले पुरुष के सम्बन्ध में है -यह कथन भी आपका समीचीन नहीं होगा, क्योंकि वहां सामान्य कथन है (न कि किसी मध्यम या हीन शक्ति विशेष वाले व्यक्ति के लिए)। और सभी विशेषों का विषय होना युक्तियुक्त भी नहीं है, क्योंकि प्रकृष्ट बुद्धि वाले व्यक्ति को भी शब्द रूपी धर्मी को बिना ग्रहण किये, उत्तरोत्तर अनेक धर्मों का ग्रहण संभव नहीं होता, क्योंकि निराधार धर्मों का होना असंगत है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 269 // (सिद्धान्त-विरोध आदि दोष भी) और, समय मात्र में भी 'शब्द' ऐसे विशेषज्ञान का सद्भाव जो मानते हैं, उनके कथन में भी आगम-विरोध आदि अन्य दोष हैं। वे (दोष) कौन से हैं? इसका उत्तर (भाष्यकार) दे रहे हैं // 270 // अत्थोग्गहो न समयं, अहवा समओवओगबाहुल्लं / सव्वविसेसग्गहणं, सव्वमई वोग्गहो गिज्झो // // 271 // एगो वाऽवाओ च्चिय, अहवा सोऽगहिय-णीहिए पत्तो। उक्कम-वइक्कमा वा, पत्ता धुवमोग्गहाईणं // IFર૭૨ II सामण्णं च विसेसो, सो वा सामण्णमुभयमुभयं वा / न य जुत्तं सव्वमियं, (वा) सामण्णालंबणं मोतुं // ---------- विशेषावश्यक भाष्य -- ----- 393_
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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