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________________ लक्खणभेआ हेऊफलभावओ भेयइन्दियविभागा। वागक्खरमूएयरभेआ भेओ मइ-सुयाणं // 17 // [संस्कृतच्छाया:- लक्षणभेदाद् हेतुफलभावाद् भेदेन्द्रियविभागात् / वल्काक्षरमूकेतरभेदाद् भेदो मतिश्रुतयो॥॥] लक्षणभेदाद् भिन्नलक्षणत्वाद् मति-श्रुतयोर्भेदः। तथा मतिज्ञानं हेतुः, श्रुतं तु तत्फलं तत्कार्यम्, इति हेतुफलभावात् तयोर्भेदः। तथा 'भेअत्ति'। विभागशब्दोऽत्रापि योज्यते, ततश्च भेदानां विभागो विशेषो भिन्नत्वं भेदविभागः, तस्मादपि मति-श्रुतयोर्भदः। अवग्रहादिभेदादष्टाविंशत्यादिभेदं हि मतिज्ञानं वक्ष्यते 'अक्खर सन्नी सम्म' इत्यादि वक्ष्यमाणवचनाच्चतुर्दशादिभेदं च श्रुतज्ञानम्, इति भेदविभागात् तयोर्भेद इति भावः। 'इंदियविभाग त्ति'। तत्त्वतः श्रोत्रविषयमेव श्रुतज्ञानम्, शेषेन्द्रियविषयमपि मतिज्ञानम्, इत्येवं वक्ष्यमाणादिन्द्रियविभागाच्च तयोर्भेदः। 'वागेत्यादि / वल्कश्चाऽक्षरं च मूकं च वल्कादिप्रतिपक्षभूतानीतराणि च वल्काऽक्षर-मूकेतराणि तैर्योऽसौ भेदस्तस्मादपि मति-श्रुतयोर्भेद इत्यर्थः। (97) लक्खणभेआ हेऊफलभावओ भेयइन्दियविभागा। * वागक्खरमूएयरभेआ भेओ मइ-सुयाणं // [(गाथा-अर्थः) लक्षण-भेद से, हेतु-फल भाव से, भेद-विभाग से, इन्द्रिय-विभाग से, तथा वल्क, अक्षर, मूक-अमूक सम्बन्धी भिन्नता से, मति व श्रुत में भेद (भिन्नता) है।] व्याख्याः- दोनों के लक्षण भिन्न-भिन्न हैं, अतः लक्षण-भेद के कारण मति व श्रुत में परस्पर भेद है। इसी तरह, मतिज्ञान हेतु है और श्रुत उसका फल यानी कार्य है, अतः हेतु-फलरूपता के कारण भी इन दोनों में भेद है। (भेद-इन्द्रियविभागात्-) विभाग पद को भेद व इन्द्रिय -इन दोनों से जोड़ना चाहिए, अतः भेदविभाग व इन्द्रियविभाग- दोनों के आधार पर भिन्नता है। अवग्रह आदि भेदों के कारण मतिज्ञान के 28 आदि भेद हैं तो 'अक्षरं संज्ञि सम्यक्' इत्यादि आगे कहे जाने वाले वचनों से श्रुतज्ञान के 24 आदि भेद हैं, इस प्रकार दोनों की प्रकार-भिन्नता होने से भी उनमें भिन्नता है। इन्द्रियविभाग के कारण, अर्थात् वस्तुतः श्रुतज्ञान श्रोत्रेन्द्रिय का ही विषय है, जबकि मतिज्ञान शेष इन्द्रियों का भी विषय है, इस प्रकार आगे कहे जाने वाले इन्द्रिय-सम्बन्धी विभाग के कारण भी उन दोनों (मति व श्रुत) में भिन्नता है। . (वल्काक्षरमूकेतरभेदात्-) तात्पर्य यह है कि वल्क, अक्षर, मूक और इनसे इतर यानी प्रतिपक्षी अर्थात् अवल्क, अनक्षर व अमूक-इन के आधार पर जो इनमें परस्पर भेद है, उसके कारण भी दोनों में भिन्नता है। ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 153
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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