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________________ ननु नामादीन्यपि यदि भावमङ्गलानि, तर्हि किं तान्यपि तीर्थकरादिवत् पूज्यानि?, इत्याशक्याह किं पुण तमणेगंतियमच्चन्तं चनजओऽभिहाणाई। तव्विवरीअं भावे तेण विसेसेण तं पुजं // 59 // [संस्कृतच्छाया:- किं पुनः तदनैकान्तिकमत्यन्तं च न यतोऽभिधानादि। तद्विपरीतं भावे तेन विशेषेण तत् पूज्यम्॥] नामादीन्यप्युक्तयुक्त्या भावमङ्गलानि। किं पुनः?, यो विशेषः स उच्यते- तदभिधानादित्रयमनैकान्तिकम्, समीहितफलसाधने निश्चयाभावात्, तथाऽऽत्यन्तिकं च यतो न भवति, आत्यन्तिकप्रकर्षप्राप्ततथाविधविशिष्टफलसाधकत्वाभावात्। भावे भावविषयं तु मङ्गलमुक्तविपरीतस्वरूपम्, तेन विशेषतो यथा तत् पूज्यम्, नैवमितराणि // इति गाथार्थः॥५९॥ नाम आदि भी यदि भावमङ्गल हैं, तब क्या वे भी तीर्थंकर आदि की तरह पूज्य हैं? इस आशंका को (ध्यान में रख कर, समाधान) प्रस्तुत कर रहे हैं // 59 // किं पुण तमणेगंतियमतच्चंतं च न जओऽभिहाणाइं। तव्विवरीअं भावे, तेण विसे सेण तं पुज्जं // [(गाथा-अर्थः) किन्तु (यहां विशेष ज्ञातव्य यह है कि) चूंकि इन नाम आदि तीन की (भावमङ्गलादि परिणति में) कारणता एकान्तिक (निश्चित) नहीं, और आत्यन्तिक भी नहीं (अर्थात् पूर्णतया फलप्राप्ति होती हो-ऐसा भी नहीं), और भाव में इससे विपरीत बात है (अर्थात् भावमङ्गल की परिणति में उसकी कारणता निश्चित है, और उससे पूर्णतया फलप्राप्ति भी होती है), इसलिए इस विशेषता के कारण वह नाम आदि तीन की तुलना में (ही) पूज्य (माना जाता) है (नामादि तीन पूज्य नहीं है)।] र व्याख्याः- नाम आदि भी उपर्युक्त रीति से भावमङ्गल हैं। किन्तु (इनकी अपेक्षा 'भाव' की) जो विशेषता है, वह बताई जा रही है- वे नाम आदि तीन अनैकान्तिक हैं, क्योंकि अभीप्सित फल की सिद्धि में उनकी साधनता अनिश्चित है, इसी प्रकार वे आत्यन्तिक भी नहीं है, क्योंकि अत्यन्त प्रकर्ष (उत्कृष्टता) वाले वैसे विशिष्ट फल के साधक नहीं हो पाते (जैसा फल 'भाव' से मिलता है)। भाव यानी भावविषयक मङ्गल तो उपर्युक्त (नामादि त्रय के) स्वरूप से विपरीत है, इस कारण से वह विशेष रूप से पूज्य है, अन्य नामादि तीन (पूज्य) नहीं हैं। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 19 // ------ विशेषावश्यक भाष्य -------- 93 2
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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