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________________ तदेवं भिन्नवस्तुषु विशेषतश्चिन्त्यमानानां नामादीनां प्रधानेतरभावो दर्शितः, सामान्यतः पुनर्विचिन्त्यमानानां सर्ववस्तुषु प्रत्येकं चतुर्णामप्यमीषां सद्भावः प्राप्यत एव, इति दर्शयन्नाह अहवा वत्थुभिहाणं नाम, ठवणा य जो तदागारो। कारणया से दव्वं, कजावन्नं तयं भावो॥६०॥ [संस्कृतच्छाया:- अथवा वस्त्वभिधानं नाम, स्थापना च यस्तदाकारः। कारणता तस्य द्रव्यं, कार्यापन्नं तद् भावः॥] अथवा सर्वस्यापि घट-पटादिवस्तुनो यदात्मीयमभिधानं तद् नाम, यथोर्ध्वकुण्डलेष्वायतवृत्तग्रीवो घट:, आतानवितानीभूततन्तुसन्तान: पट इत्यादि। स्थापना पुनर्यस्तस्यैव सर्वस्य वस्तुनो निज आकारः। भाविकपालादिकार्यापेक्षया तु या 'से' तस्य सर्वस्यापि वस्तुनः कारणता हेतुता तद् द्रव्यम्, "भूतस्य भाविनो वा भावस्य हि कारणं तु यल्लोके, तद् द्रव्यम्" इति वचनात् / मृत्पिण्डादिवस्तुनस्तु कार्यापन्नं जन्यत्वापन्नं तदेव घटादिकं सर्वं वस्तु भावोऽभिधीयते, भवनं भाव इति कृत्वा / [नाम आदि के लक्षण] इस प्रकार, भिन्न-भिन्न (नाम आदि) वस्तुओं में विशेष रूप से विचार करते हुए, उनमें प्रधानता-मुख्यता व गौणता का निदर्शन करा दिया गया। अब सामान्यतः विचार करते हुए सब वस्तुओं में प्रत्येक में नाम आदि इन चारों का सद्भाव मिलता ही है- इसे स्पष्ट करते हुए भाष्यकार कह रहे हैं // 60 // अहवा वत्थुभिहाणं नामं, ठवणा य जो तदागारो। कारणया से दव्वं, कज्जावन्नं तयं भावो || [(गाथा-अर्थः) अथवा वस्तु का वाचक शब्द 'नाम' है, उसका आकार 'स्थापना' है, (परिणामी कार्य की) कारणता 'द्रव्य' है और जो कार्यरूप परिणति है वह 'भाव' है।] व्याख्याः - अथवा घट-पट आदि समस्त वस्तुएं जो हैं, उनमें (नाम आदि चारों पर्याय हैं, जैसे) जो उनका वाचक शब्द है वह 'नाम' है, जैसे ऊपर कुण्डल जैसा (मुख), सरल विस्तार के गोल ग्रीवा वाले (पात्र) का नाम 'घड़ा', ताने-बाने से युक्त तन्तुओं के समूहरूप का नाम ‘कपड़ा' इत्यादि / उसी समस्त वस्तु का जो अपना आकार है, वह 'स्थापना' है। भावी कपाल आदि कार्य की अपेक्षा से (अर्थात् भावी पर्याय को दृष्टि में रखें तो) उस समस्त वस्तु में जो निहित कारणता, हेतुता है, वह 'द्रव्य' है, क्योंकि 'लोक में भूत या भावी (पर्याय) का जो कारण है, वह 'द्रव्य' है -ऐसा कथन प्राप्त होता है। भवन (होना, कार्य रूप में में होना) ही 'भाव' है- इस दृष्टि से मिट्टी के पिण्ड के पिण्डआदि वस्तु (रूप कारण) से जन्य या कार्य रूप में परिणत जो घट आदि है, वही 'भाव' है। Ma 94 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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