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________________ * समुद्घात कषायद्वारका विवेचन . * 299 . 4. वैक्रिय समुद्घात-वैक्रिय लब्धिवान् जीव कर्म युक्त ऐसे अपने आत्मप्रदेशोंको शरीरके बाहर निकालकर उन्हें लम्बाई-चौड़ाईमें स्वशरीर तुल्य, तथा लम्बाईमें संख्याता योजन दीर्घ लम्बाकर दंड आकार स्वरूप फैलाकर पूर्वोपार्जित वैक्रिय नामकर्मके अनेक प्रदेशोंको उदीरणा द्वारा उदयमान् कराके विनाशके साथ, रचना करनेके लिए निश्चित नये उत्तर वैक्रिय शरीर योग्य पुद्गल स्कन्धोंको ग्रहण करके वैक्रिय शरीर जो बनाता है वह वैक्रिय समुद्घात है / नया वैक्रिय शरीर बनाना हो तब जीवको ऐसा प्रयत्न करना पड़ता है। इसकी सहायतासे ही शरीर बनता है अथवा तैयार होता है। 5. तैजस समुद्घात- तेजोलेश्याकी लब्धियुक्त जीव स्वशरीरके आत्मप्रदेशोंको प्रबल प्रयत्नोंसे शरीरके बाहर निकालकर, उन्हें उत्कृष्टसे संख्यात योजन दीर्घ तथा स्वदेह प्रमाण लम्बा-चौडा दंडाकार रचकर, पूर्वोपार्जित तैजस नामकर्म के प्रदेशोंको प्रबल उदीरणाकरणसे उदित करके क्षय ( नाश ) करनेके हेतुसे, नये तैजस पुद्गलोंको ग्रहण करके तेजोलेश्या अथवा शीतलेश्या छोड़ते हैं। किसीके ऊपर तेजो अथवा शीतलेश्या छोड़नी हो तब आत्माको उक्त प्रक्रिया करनी पड़ती है। / 6. आहारक समुद्घात-आहारक लब्धिधारी चौदह पूर्वधर मुनि महात्मा अथवा जिनेश्वरदेवकी समवसरणकी ऋद्धि आदि देखनेके लिए अथवा कोई प्रश्नके समाधानके लिए अपने आत्मप्रदेशोंको अपने शरीरके बाहर निकालकर, उनका उत्कृष्टसे संख्यात योजन दीर्घ तथा स्वदेह प्रमाण युक्त मोटा-सा दंडाकार रचकर, पूर्वोपार्जित आहारक नामकर्मके पुद्गलोंको प्रबल उदीरणा द्वारा शीघ्र उदयमें लाकर, निर्जरा करनेके हेतु नये आहारक शरीर योग्य पुद्गल ग्रहण करके आहारक शरीर बनाते हैं। 7. केवली समुद्घात-जिन्हें केवलज्ञान ( त्रिकालज्ञान ) प्राप्त हुआ है, वे ही इस समुद्घात करनेके अधिकारी है / यहाँ केवलज्ञानीने आठ कर्मों मेंसे चार घाती कर्मों को दूर किये हैं जरूर, लेकिन वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुष्य ये चार अघाती कमौका उदय रहता है / इनमें आयुष्य कर्मकी स्थितिके अलावा शेष तीन कर्मोकी स्थिति अगर अधिक रहती हो तो ऐसा बनेगा कि आयुष्य तो पूर्ण हो जायेगा लेकिन कर्मका भोग रह जायेगा। अगर कर्मको भुगतना रह भी गया तो केवली भगवंत अशरीरी. बनकर मोक्षमें जा नहीं सकते और फिर केवलज्ञानीको तो दूसरा जन्म धारण करना
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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