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________________ 62 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-८ सागरोपम, दसवें प्राणत देवलोकमें बीस सागरोपम, ग्यारहवें आरण देवलोकमें इक्कीस सागरोपम और बारहवें अच्युत देवलोकमें बाईस सागरोपमकी आयुष्य स्थिति होती है। 'प्रैवेयक'का तात्पर्य क्या है ? समग्र चौदह राजलोक 'वैशाख ' संस्थान में स्थित पुरुषके आकारमें है। जिस तरह पुरुषोंके गलेमें, वक्षःस्थलमें, कटि आदि स्थानोंमें आभूषण होते हैं, वैसे चौदह राजलोकरूपी पुरुषके आभूषण कौनसे हैं / तो जो विमानादि हैं वे ही उसके आभूषणरूप हैं, उनमें नव ग्रैवेयकके विमान चौदह राजलोकरूपी पुरुषके गलेके स्थानमें आभूषणरूपमें विद्यमान होनेसे उसे 'अवेयक कहा जाता है / वेयक ४४शब्दकी व्युत्पत्ति भी वही प्रकट करती है। ये नव (नौ) अवेयक खड़े किये गये दण्डकी तरह एकके ऊपर एक स्थित हैं / अन्य ग्रन्थकार इन नौ ग्रैवेयकोंका तीन विभागोंमें परिचय कराते हैं / इनमें पहले तीनको 'अधस्तन तीन', मध्यम तीनको 'मध्यम तीन' और उनके ऊपरके तीनको ‘उपरितन तीन' इस तरह परिचय कराते हैं। ___ उनमें पहली त्रिपुटीमेंसे पहले ( अधस्तन अधस्तन) सुदर्शन ग्रेवेयकमें तेईस सागरोपम, दूसरे (अधस्तन-मध्यम) सुप्रतिष्ठित अवेयकमें चौबीस सागरोपम, तीसरे [अधस्तन-ऊर्ध्व ] मनोरम अवेयकमें पचीस सागरोपम / . दूसरी त्रिपुटीमें-चौथे [ मध्यमाधस्तन ] सर्वभद्र अवेयकमें छब्बीस सागरोपम, पाँचवें [ मध्यममध्यम ] सुविशाल अवेयकमें सताईस सागरोपम और छठे [ मध्यमोर्ध्व ] सौमनस प्रैवेयकमें अठाईस सागरोपम / तीसरी त्रिपुटीके पहले अर्थात् क्रमसे सातवें सुमनस ग्रैवेयकमें उन्तीस सागरोपम, आठवें प्रियंकर अवेयकमें तीस सागरोपम और नौवें आदित्य ग्रैवेयकमें एकतीस सागरोपमकी उत्कृष्ट-आयुष्यस्थिति होती है / __इन नौ अवेयकोंसे ऊपर स्थित पांच अनुत्तर देवलोकोंमेंसे (1) विजय (2) वैजयंत (3) जयंत और (4) अपराजित इन चारों विमानोंमें और पांचवें सर्वार्थसिद्ध नामके विमानमें देवोंकी उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति तैतीस सागरोपमकी जाने / ____ 94. ग्रेवयकास्तु-लोकपुरुषस्य ग्रीवाभरणभूताः उपचारालोक एव पुरुषस्तस्य ग्रीवेव ग्रीवा तस्यां भवा ग्रेवा अवेया ग्रैवेयका वा // अथवा ग्रीवेव ग्रीवा, चतुर्दशरज्ज्वात्मलोकपुरुषस्य त्रयोदश्या रज्जो गस्तन्निविष्टतया अतिभ्राजिष्णुतया च तदाभरणभूता ग्रैवेयाः इस तरह भी व्युत्पत्ति होती है। ___95. अन्यत्र अन्य महर्षि इन अवेयकोंके नामोंकी पहचान मागधी-प्राकृत भाषाके शब्दोंमें देते हैं, जैसे कि १-हिट्रिटम, २-हिट्ठिम-मध्यम, ३-हिट्ठिमउवरिम, ४-मध्यमहिट्ठिम, ५-मध्यम-मध्यम, ६-मध्यमउवरिम, ७-उवरिमहिट्टिम, ८-उवरिममध्यम, ९-उवरिमउवरिम / ये केवल भाषाके कारण अलग दंगसे बोले जाते हैं, लेकिन मतांतर न समझें / ये नाम उन ग्रैवेयकोंके स्थान-सूचक हैं /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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