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________________ .202. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . . . लहू एक क्षणके लिए रूक जाने पर उसी क्षणमें उस व्यक्तिका आयुष्य पूर्ण हो जाता है। इस तरह स्नेहदशाके कारण बहता आयुष्यका प्रवाह खतम हो जाता है। स्नेहके बारेमें भी शास्त्रमें एक दृष्टांत दिया है, उसे यहाँ प्रस्तुत करता हूँ। स्नेहदशाके कारण होती मृत्यु पर एक उदाहरण एक पति-पत्नीके विच अत्यन्त आत्मीयता थी। पत्नी बहुत ही पतिव्रता और प्रेमी थी। पतिको व्यापार-बनिजके लिए बाहर जाना हुआ। गाँवके मसखरे युवान इन दोनों पति-पत्नीके बिच कितनी गाढ़ मित्रता-प्रेम है इसे जानते थे / मसखरे युवानोंको हुआ कि आज प्रवासी पतिकी पत्नीके प्रेमकी थोडी परीक्षा और मजाक करें। उस पतिके मित्रको ज्ञात हुआ कि अपना मित्र आज अमुक समय पर घर लौटनेवाला है, यह बात उसने ... उन युवानोंसे की। उन्हें मसखरी-मजाक करनेकी जो ख्वाहिश थी उसके लिए मौका मिल गया। पैदल चलकर आता हुआ पति गाँवसे थोडी दूर था तब वे युवान उसके घर पर दौडे जाकर उसकी पत्नीको बराबर विश्वास आ जाए इस तरह मुँहका दिखावा और वाणीसे करुण शब्द कहकर बोले कि 'तुम्हारा पति कल गाँवमें चल बसा है।' तुम्हें खबर देने हम आए हैं। यह बात सुनते ही निराधार दशाका अनुभव करती वह स्त्री, असाधारण गहरे स्नेहके कारण पतिके वियोगका भारी आघात लगनेसे मूछित होकर गिर पडी। तुरंत ही उसका प्राण-पक्षी उड़ गया। प्रेमकी परीक्षा करने आए वे युवान तो अपनी मसखरीका ऐसा भयानक परिणाम देखकर भाग गए। थोड़ी ही देरमें उसका पति हर्ष भरा उत्साह-आनंदके साथ घर आया। घरमें पैर रखते ही पत्नीको मरी देखकर-जानकर, सार्थवाह पतिके भी पत्नी परके अनन्य-अपार हार्दिक स्नेह-प्रेम के कारण अपनी नजर समक्ष पत्नीकी मृत्यु सह न सका, उसे भी प्रचंड आघात लगा और उसका भी हार्ट फेल होनेसे वहीं गिर पडा और मर गया। ___परस्परके गाढ स्नेह-प्रेमके कारण दोनोंकी जीवन-दोरी एकाएक तूट गई। इन दोनोंकी मृत्यु स्नेह-परिणाम से हुई। ऐसा दूसरी अनेक बाबतोंसे बन सकता है। प्रश्न-राग और स्नेहमें क्या तफावत है ? ऐसा प्रश्न कदाचित् हो तो उसका उत्तर दोनों दृष्टांतोंसे समझमें आवे वैसा है फिर भी उसकी सामान्य व्याख्या यह है कि अपरिचित व्यक्ति पर जो भाव हो जाय वह 'राग' और परिचित व्यक्ति पर जो भाव हो जाए वह 'स्नेह' / राग या स्नेह द्विपक्षीय या उभयपक्षीय भी हो सकता है। संसारमें ऐसी घटनाएँ दिन-प्रतिदिन हजारों बनती रहती हैं।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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