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________________ * बंधे हुए आयुष्य किन सात कारणोंसे खंडित होते हैं वह * * 203 . (3) भारी भय-डरसे भी मृत्यु होती है उस पर दृष्टान्त . किसी भी प्रकारका, भयंकर कोटिका भय होने पर भी व्यक्तिको हार्टफेल होनेसे मर जाता हैं, उसका दृष्टांत देखिए हिन्दु जनता जिन्हें भगवान सम पूजते हैं। हमारे यहाँ भी जो भावि उत्सर्पिणीमें अमम नामके तीर्थकर होनेवाले हैं वे श्रीकृष्ण जब वासुदेवरूपमें भगवान श्री नेमिनाथजी के कालमें (इ. स. पूर्व तीन हजार वर्ष पर) थे तब वे जैनधर्मी थे और ( 22 वें तीर्थकर ) श्री नेमिनाथजी भगवानके भक्त-श्रावंक थे / श्रीकृष्ण वासुदेवके एक पुत्र गजसुकुमार थे। उनका लग्न वासुदेवने सोमिल नामके ब्राह्मणकी कन्याके साथ किया था। बादमें भगवानकी देशना-प्रवचन सुनकर गजसुकुमारको बैराग होने पर दीक्षा ली। दीक्षा लेनेके बाद वे उत्कृष्ट कोटिके त्याग तपमें लग गए / एकांत जंगलमें विशुद्ध ध्यान अधिक निराबाधपनसे हो इस हेतुसे द्वारिका नगरीके बाहर जंगलमें ध्यान करने गये। इसकी सोमिलको खबर हुई। दीक्षा ली तबसे सोमिलको अपने जमाई गजसुकुमार पर बहुत ही रोष हुआ था। उसका बदला लेनेका मौका नहीं मिलता था। जमाई जंगलमें अकेले खडे हैं यह मालूम होते ही मौका मिल गया। सोमिल अपने जमाईको कुशलतासे मारनेको उपयोगी सामग्री लेकर जंगलमें पहुँचा। ध्यानस्थ गजसुकुमार मुनिके मस्तक पर माटीकी पालि बांधी, और फिर उसमें खैरके अंगारे भरे और आग जला दी। लेकिन कदाचित् किसीको खबर हो जाए तो ? अतः तुरंत ही शीघ्र शहरमें लौटा.। दरवाजेमें दाखिल हुआ, कि सामनेसे श्रीकृष्णजी गजसुकुमारको वंदन करने जा रहे थे। सोमिलने ज्यों ही कृष्णको देखा त्यों ही नाहिंमत हो गया। अरे ! बाप अब मेरी बारी आ गई। ऐसा प्रचण्ड भय पैदा हुआ कि उस भयके आघातसे सोमिलका हार्ट वहीं पर फट गया-बैठ गया और मृत्यु पाई। इस तरह कराल-भयंकर कृत्यके परिणामके भयसे कितने ही लोग मृत्युको भेंटते हैं। ... इस तरह राग, स्नेह और भय से होते मरणका वर्णन समाप्त होनेसे पहले “अध्यवसान' नामके प्रकारकी व्याख्या पूर्ण हुई। .... 2. निमित्त उपक्रम-जीवकी मृत्युमें हजारों निमित्त कारण बनते हैं। निमित्तमें तो सैकडों बावतोंका उल्लेख किया जा सकता है। संक्षिप्तमें बतायें तो-विषपान, शरीर पर लगती बंदूककी गोली, चाबुक, लकडी, कुल्हाडी आदि विविध शस्त्रों-हथियारों के प्रहार, बम्बमारी, आंधी, जलकी ज्वार - लहरे, अमिस्नान, गलेमें फंदा, अचानक गिर
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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