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________________ •बंधे हुए आयुष्य किन सात कारणोंसे संडित होते हैं वह. .2010 ... लोगोंके या अखबारों के द्वारा प्रेममें असफल बने कितने ही युवान-युवतियोंकी आत्महत्याके किस्से आपने पढे-सुने हैं। सयाने और समझदार जीवोंको तो शुरुआतसे ही इस दिशाकी ओर मनको लगाना ही नहीं चाहिए / कदाचित् लग गया तो मनकी लगामको खिंचकर पूर्ववत् जोरसे स्थिर कर देना और सामनेवाले व्यक्तिको तुरंत भूल जाना, याद ही नहीं करना। इस तरफ पराजमुख हो जाना / यह इस घटनाका बोधपाठ है। धर्मोपदेश और सद्विचारोंका सहारा लिया जा सके, विद्यार्थी अगर अपेक्षा रक्खे कि एकाध छोटासा उदाहरण दीजिए न / तो पढिए- . रांग पर पानीकी प्याऊवाली स्त्रीका दूसरा उदाहरण ___कहीं युवान पहल करता है तो कहीं युवती पहल करती है / लेकिन यहाँ जो दृष्टांत देता हूँ. वह एकपक्षीय अर्थात् एकतरफा जन्मी रागदशाका है। . गरमीकी ऋतुमें प्रवास करता एक स्वरूपवान, सुंदर, सशक्त युवान मार्ग पर पानीकी प्याऊ होनेसे पानी पीने आया। इस प्याऊमें पानी पिलानेका काम एक सुंदर युवान स्त्री करती थी। यह स्त्री युवानका सौंदर्य आदि देखकर उसके पर मुग्ध मोहित बन गई, उसके सामने वह तिरछी नजर से देखती ही रही। नारीजाति किस तरह अपने हिये में जन्मे रागकी आगको बता सके ! वह युवान पुरुष संस्कारी, खानदान था इसलिए उसने तो नीची आँख रखकर पानी पिया और चला गया। अनजाने भी उस स्त्रीके हृदयको हर लिया। इस बाजू पर यह युवती दूर दूर तक उस युवानको देखती ही रही। उसके हृदयमें तो स्नेहका सागर उमड पडा, वह तो अत्यन्त रागासक्त दशामें और विरह व्यथाके भारी पंजे में फँस गई। मन और मस्तककी समतुला गँवाती चली। शीघ्र जमीन पर पटक गई। हार्ट पर बहुत दबाव बढ गया। उस पुरुषमें लयलीन बनी युवती अंतमें मुरणकी शरण हुई। स्त्री कामातुर बनी हो या न बनी हो लेकिन दोनों स्थितिमें वासना रहित रागदशा भी दस प्राणकी मारक बन सकती है / ___(2) स्नेहदशा के कारण भी मृत्यु होती है। अर्थात् जिसके प्रति जिसे अत्यन्त अकल्पनीय स्नेह हो, उस स्नेहमें जोरदार प्रतिकूलता खडी हो जाए, तथा अति स्नेहमय व्यक्तिकी मृत्युके अशुभ समाचार सुने जाए, इसलिए स्नेहीजन, इस स्नेहमें पडा फाट या मृत्युका आघात सहन नहीं कर सकता और एकाएक हार्ट पर अंतिम कोटिका दबाव आनेसे लहूकी गति छिन्नभिन्न हो जानेसे, हार्टकी नसोंमें से पसार होता रुधिरबृ. सं. 26
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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