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________________ * 104. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * समाधान-ऊपरके प्रश्नका समाधान यह है कि इस गाथामें प्रत्येक भांगेमें अलग अलग व्याख्यान कहा है और गत गाथामें समुच्चयमें व्याख्यान किया है जिससे कुछ विरोध नहीं आता अर्थात् जिस तरह इस गाथामें केवल पुरुष होकर जाय तो. कितने ? स्त्री होकर जायँ तो कितने इस तरह अलग अलग रीतसे कहा है / जब कि गत गाथाकी व्याख्यामें तो द्विसंयोगसे-त्रिसंयोगसे मिलकर मोक्षमें जायें तो बीस जायँ ऐसा कहा है / अर्थात्- पुरुष-स्त्री होकर सिद्ध हो, पुरुष-स्त्री-नपुंसक तीनों एकत्र होकर एक समयमें सिद्ध हों तो बीस हो सकते हैं / यह विशेषता समझना / इस पद्धतिके अनुसार सर्व भंगों के बारेमें सोचें / यहाँ गति-जाति-वेदादि आश्रयी बात की। ___ ग्रन्थान्तरसे खास जानने योग्य बाबत बताई जाती हैं / उसमें क्षेत्राश्रयी विशेष कहते हैं / मेरुपर्वत के नंदनवनमें से अगर मोक्षमें जाएँ तो एक समय में चार. पंडकवनमें से जाएँ तो दो, महाविदेहकी एक विजयमेंसे जायँ तो बीस, प्रत्येक अकर्मभूमिमें से संहरण किये गये मोक्षमें जाएँ तो दस, प्रत्येक कर्मभूमिमेंसे जायें तो 108, कालाश्रयी विशेष कहते शास्त्रमें बताया है कि-उत्सर्पिणी के तीसरे तथा अवसर्पिणीके चौथे आरेमें 108 मोक्षमें जाएँ और अवसर्पिणीके पाँचवें आरेमें 20 मोक्ष जायें और शेष " पहले, दूसरे और छठे आरेमें और प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीमें संहरणसे दस मोक्षमें जायें। [276-3] नवभंग यन्त्र 1. पुरुषसे पुरुष होकर 108 / 4. स्त्रीसे पुरुष होकर 10 7. नपुंसफसे नपुंसक होकर 10 2. पुरुषसे स्त्री होकर 10 / 5. स्त्रीसे स्त्री होकर 10 8. नपुंसकसे स्त्री होकर 10 3. पुरुषसे नपुंसक होकर 10 / 6. स्त्रीसे नपुंसक होकर 10 / 9. नपुंसकसे पुरुष होकर 10 अवतरण-अब सिद्धिगति आश्रयी उपपातविरहकाल तथा च्यवनाभावको बताते हैं। विरहो छमास गुरुओ, लहु समओ चवणमिह नत्थि // 277 // 415. यह मत सबको मान्य है अतः पश्चिमविदेहकी अंतिम दो विजयोंमें होकर चालीस मोक्षमें जायें / 416. परन्तु चालु अवसर्पिणी के ( चौथे आरेमें न जाकर ) तीसरे आरेके अंत में ही उत्कृष्ट अवगाहना. वाले ऋषभदेव सहित 108 - जीव मोक्षमें गये वह नहीं होने योग्य घटना अनंता कालमें हुई अतः उसे आश्चर्यरूप मानी है। 417. चौथे, पाँचवें आरेमें तीर्थ होनेका कहा है। 418. महाविदेहमें केवलज्ञान पाये केवलीको अगर भरतादि क्षेत्रमें कोई बैरी देव लावे, तो वहाँसे वह मोक्षमें जाय इस अपेक्षासे (इस भरत-ऐरवतमें ) किसी भी आरेमें मोक्ष समझना /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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