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________________ * पुरुषादि वेदसे आये हुओंकी समयसिद्धि * अवतरण- इस तरह नारकादि गति से आये हुओं की सामान्य-विशेषसे सिद्धि कहने के बाद अब पुरुषादि वेदसे आये हुओं की समय सिद्धि कहते हैं / तह पुंवेएहितो, पुरिसा होऊण अट्ठसयं // 276 // सेसट्ठभंगएसु, दस दस सिझंति एगसमयम्मि // 2763 // गाथार्थ- इस तरह पुरुषवेदसे उद्धार पाये हुए पुरुष होकर एकसौ आठ मोक्षमें जाते हैं और शेष आठ मांगोंमें दस दस एक समयमें सिद्ध होते हैं // 2763 // विशेषार्थ-वेद द्वारा होती सिद्धिसंख्याका प्रकार बताते हुए बताते हैं कि-यहाँ वेद द्वारा कुल नव भांगमें सिद्धिसंख्या विचारनेकी है अर्थात् (1) पुरुष वेदवाले देवों, मनुष्यों तथा तिर्यंचोंमेंसे निकले जीव (1) कुछ पुरुषरुपमें जन्म लेते हैं (2) कुछ स्त्रीरुपमें और .(3) कुछ नपुंसक रुपमें जन्म लेते हैं। इस तरह तीन भांगे। इसी तरह स्त्री वेदवाली देवियाँ, मनुष्यनीयाँ ( नारियाँ ) और तिर्यचिनियाँ मरकर (4) कुछ पुरुष (5) कुछ स्त्रियाँ और (6) कुछ नपुंसको होते हैं। इस तरह दूसरे तीन भांगे / ( कुल छः हुए ) इस तरह नपुंसक ऐसे नारकों, मनुष्यों तथा तिर्यचोंमें से निकलकर (7) पुरुष (8) स्त्री और (9) नपुंसक रुपमें जन्मते हैं। इस तरह नौ भांगे हुए। इन नौ भांगों से सिद्धि किस तरह हो सके यह समझाते हैं। प्रथम त्रिभंगमें-पुरुषवेदी देव मरकर पुरुष-नररूपमें जन्म लेकर मोक्षमें जाए एक समयमें एक साथ अधिकाधिक 108 जीव जा सकते / वे देवो मनुष्य-स्त्री रूपमें जन्म लेकर मोक्षमें जाएँ तो एक समयमें दस जाएँ और वे देवो अगर नपंसक रूपमें जन्म लेकर मोक्षमें जाएँ तो भी दस ही मोक्षमें जाएँ / द्वितीय त्रिभंगमें-स्त्रीवेदी देवियाँ मरकर पुरुषो होकर मोक्षमें जाएँ तो दस ही जायँ और वे ही देवियाँ स्त्री-नपुंसक रूपमें जन्म लेकर मोक्षमें जायँ तो भी दस ही जायें। तृतीय त्रिभंगमें इसी तरह नारकादि गतियों के नपुसको पुरुष, स्त्री या नपुंसक रूपमें मोक्षमें जाए तो दस ही जायें / शंका-यहाँ पर आप देवीसे आए दस ही सिद्ध हों ऐसा कहते हैं लेकिन गत गाथा में तो 'वैमानिकों, ज्योतिष्क देवियों और स्त्रीमें से आएँ बीस सिद्ध होते हैं ' ऐसा कह चुके हैं तो क्या समझना ? - 414. देवलोकमें नपुंसकवेदी नहीं होते अतः उनका नामोल्लेख नहीं किया गया / और नरकमें केवल नपुंसकवेद ही है, दूसरा वेदोदय है ही नहीं।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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