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________________ उत्सर्पिणी कालका वर्णन . . गाथा 5-6 [49 होनेसे ही पूर्वके क्षयोपशमसे और साथ ही उस क्षेत्रके अधिष्ठाताके तथाविध प्रभावसे सर्व अनुकूल व्यवहार प्रवर्त्तमान होते हैं। इसीलिये ‘अवसर्पिणीवत् उत्सर्पिणीमें सर्वव्यवहार कुलकर प्रवर्तित नहीं करते' ऐसा जो शास्त्रीय कथन है वह योग्य ही है। यद्यपि कुलकर उस उत्सर्पिणीके चौथे आरेके प्रथम विभागमें उत्पन्न होते हैं, किन्तु व्यवहार प्रवर्तित करनेका उस कालमें कुलकरों को प्रयोजन नहीं रहता है, क्योंकि सर्व व्यवहार तीसरे आरेसे ही शुरू हो चुके होते हैं। यहाँ कुछ आचार्य उत्सर्पिणीके चौथे आरेमें 15 कुलकरोंकी उत्पत्ति मानते हैं और इसलिए उस समय 'धिक्कार' आदि तीन दंड नीतियाँ प्रवर्तित करते हैं ऐसा कहते हैं। यदि कुलकरकी उत्पत्ति न मानी जाए तो संपूर्ण उत्सर्पिणी कुलकर रहित हो जाए और कुलकरकी उत्पत्तिवाली मात्र अवसर्पिणी ही रहे ! अतः कुलकरोंकी उत्पत्ति मानना कथमपि अनुचित नहीं है। उत्सर्पिणीके तीसरे आरेमें प्रथम तीर्थकर पद्मनाभादि 23 7 तीर्थंकरोंकी उत्पत्ति कही गई है। अवसर्पिणीके जो अन्तिम तीर्थकर होते हैं, उनके समान उत्सर्पिणीके प्रथम तीर्थंकर होते हैं। इस प्रकार शास्त्रोंमें जिस तरह क्रम कहा है उसी तरह यथासंभव सोचें / इस उत्सर्पिणी कालमें भी 24 तीर्थकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव, 9 बलदेव, 9 नारद और 11 रुद्र उत्पन्न होते हैं। उनमें 11 रुद्र और 9 नारदके अतिरिक्त 63, 8 शलाका पुरुष गिने जाते हैं। उनमें 23 तीर्थकर इस आरेमें ही उत्पन्न होते हैं। 78. भाविन्यां तु पद्मनाभः शूरदेवः सुपार्श्वकः / स्वयंप्रभश्च सर्वानुभूतिर्देवश्रुतोदयौ / पेढाल: पोट्टिलश्चापि शतकीर्तिश्च सुव्रतः // 1 // अममो निष्कषायश्च निष्पुलाकोऽथ निर्ममः / चित्रगुप्तः समाधिश्च संवरश्च यशोधरः // 2 // विजयो मल्लदेवौ चानन्तवीर्यश्च भद्रकृत् / एवं सर्वावसर्पिण्युत्सर्पिणीषु जिनोत्तमाः // 3 // [है० को० सर्ग 1] 79. उक्तं च-'गुणनवइ ह वीरो निव्वुओ चउत्थारे / उस्सपिणीतइयारे, गए उ एवं पउमजम्मो // ' [ का० स० 30 ] 80. इस ग्रन्थमें तो प्रसंगके अनुरूप ही अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीका स्वरूप बताया है / सविस्तर स्वरूप ग्रन्थान्तरोंसे देख लें। 7. सं. 7
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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