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________________ * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . चनारक। द्वारा देखे जाते चमत्कारों का भी प्रसंग रहता नहीं अतः नरक के अस्तित्व के लिए देवसिद्धि के जैसा अनुमन भले नहीं हो सकता; फिर भी अनुमान जरूर है / वह इस तरहजैसे विश्व में जघन्य-मध्यम पापकर्म फल के भोक्ता देखे जाते हैं वैसे उत्कृष्ट-प्रकृष्ट पापफल के भोक्ता भी होने ही चाहिए / तो वे कौन ? तो जिस तरह जघन्य, मध्यम कर्मफल के भोक्ता स्वरूप तीर्थकर और मनुष्य हैं, उस तरह उत्कृष्ट कर्मफल भोक्ता स्वरूप दूसरे कोई नहीं, लेकिन नारक ही हैं। शंका-क्या तिर्यच, मनुष्य में अत्यन्त दुःखी जो हो वह प्रकृष्ट पापकर्मफल का भोक्ता न माना जाए? ____समाधान-जिस तरह सुख की पराकाष्टा देवों में है उस तरह दुःख की पराकाष्टा तिर्यंच, मनुष्य में नहीं देखी जाती, इतना ही नहीं किन्तु सर्वथा दुःखी हो ऐसा कोई तिर्यच, मनुष्य, देखा नहीं जाता, अतः प्रकृष्ट दुःख के भोक्ता स्वरूप तिर्यच, मनुष्य से भिन्न कोई जाति माननी ही रही और वे ही ये नारक / __ साथ ही जैसे अत्यन्त अल्पांशी दुःखवाले व्यक्ति हमें देखने को मिलते हैं, मध्यम दुःखवाले जीव भी हम देखते हैं वैसे सबसे अधिकाधिक अन्तिम प्रकार के दुःख भोगनेवाले भी अवश्य होने ही चाहिए और वे हैं नारक, जो बात हम ऊपर कह गए / इस तरह अनुमान से नारकों का अस्तित्त्व साबित होता है। शंका-क्या आँख से और प्रयोग से सिद्ध हो उसे ही प्रत्यक्ष कहा जाए.? समाधान-इस चराचर विश्व में एक वस्तु स्वयं न देखी तो उसे अप्रत्यक्ष मान लेना यह क्या बुद्धिगम्य है सही ? हरगिज नहीं / लोक में स्वप्रत्यक्ष के सिवाय दूसरा आप्तप्रत्यक्ष भी है / आप्त अर्थात् विश्वसनीय विशिष्ट शानियों का प्रत्यक्ष / यह आप्तप्रत्यक्ष स्वप्रत्यक्ष जितना ही आदरणीय माना जाता है। जैसे सिंह, अष्टापद, जिराफ आदि दूर दूर के जंगल के प्राणियों का प्रत्यक्ष दर्शन सर्व को नहीं होता, फिर भी अगर वे उन्हें अप्रत्यक्ष कहे तो योग्य है क्या? नही, अगर थोड़ा भी बुद्धिशाली होगा तो खुद ने नहीं देखा इसलिए उसका अभाव है ऐसा कभी नहीं कहेगा / वह सोचेगा कि मैंने नहीं देखा, मगर मुझ से बडे आप्त हैं उन्हों ने देखकर हमें कहा है अतः उसका अस्तित्व जरूर है / साथ ही इस देश के तथा विदेश के गाँव, नगरों नदी-समुद्रों आदि स्थलों तथा दूसरी अनेकानेक बाबतें सृष्टि पर विद्यमान होने पर भी जिसे हमने अपनी खुद की आँखों से कदापि नहीं देखा लेकिन दूसरे व्यक्तियों ने प्रत्यक्ष की है और फिर उसकी जानकारी हमें की है, ऐसा समझकर भी हम उसका स्वीकार नहीं करते क्या ? अमेरिका का न्यूयॉर्क शहर स्वप्रत्यक्ष नहीं है, फिर भी नकशा द्वारा अमुक जगह पर है ऐसा बिना दलील हम सीधा ही स्वीकार क्या नहीं करते? अवश्य करते ही हैं, तो फिर अपने आप्त जो सर्वज्ञ हैं, जिन्हों ने नारकों को स्वप्रत्यक्ष किये ही हैं , और बाद में ही हमें बताया है अतः नारकों का अस्तित्त्व अचूक मानना ही चाहिए /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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