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________________ * नरकगति अधिकार में आठवाँ परिशिष्ट . . // सातों नरकवर्ती लेश्या, अनन्तर भव में होती लब्धिप्राप्ति तथा उनका अवधिज्ञान क्षेत्रविषयक यन्त्र // कौनसी अनन्तर भव में मनुष्यतिर्यच रूप में क्या | ज० / उ० नरकनाम लेश्या ? क्या लब्धि पावे? अवधि अवधि 1. रत्नप्रभा | कापोत | अरिहंत-चक्री-हरि-बलदेव-केवली-यति 3 // कोस| 4 कोस वाले को -देशविरति-सम्यक्त्व 2. शर्कराप्रभा / मात्र चक्रीत्व कम कर के शेष 7 लब्धियाँ | 3 कोस 3 / / कोस वाले को पा सके" 3. वालुका- कापोत, पुनः यहाँ हरि-बलदेव / कुल 3] कम | 2 // ,, प्रभा वाले को नील कर के 5 कहें" 4. पंकप्रभा नील यहाँ अरिहंतादिक आदि की चार कम वाले को करके शेष 4 (चार) करे" 5 धूमप्रभा नील-कृष्ण यहाँ आदि की पांच दूर करके यति, | 1 / / वालेको देशविरति, सम्यक्त्व ये 3 करे" 6. तमःप्रभा कृष्ण आदि की छः निकालकर देशविरति | वाले को सम्यक्त्व ये दो ही कहे" 7. तमस्तम-." | यहाँ एक सम्यक्त्व ही अनन्तर भवमें | 0 // 0 // 1 , प्रभा वाले को पावे" // श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथस्वामिने नमः // // नरकगति अधिकार में आठवाँ परिशिष्ट // नारकों की सिद्धि शंका-देवो प्रत्यक्ष न होने पर भी मानव जाति में उन विषयक देखे जाते चमत्कारों से, उनके साथ संबंध रखनेवाले विद्या-मन्त्रों की साधना द्वारा इष्टफलसिद्धि होती होने से अनुमान से अदृष्टदेवों का अस्तित्त्व भले स्वीकार करें, लेकिन नरकगतिवर्ती नारकों की सिद्धि में तो ऐसा कोई अनुमान नहीं लगता और प्रत्यक्ष तो दीखते ही नहीं तो फिर उनकी सत्ता कैसे मानी जाप? समाधान-देवों के पास तो दैविकशक्ति है और इसलिए उनकी उपासनाएँ होती हैं, जिस से वे अपनी दिव्यशक्ति का उपयोग उपासक के लिए करते हैं लेकिन नारक जीवों के पास तो ऐसा कुछ है ही नहीं इसलिए उनकी उपासना नहीं है और उपासना
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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