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________________ कौन-कौनसी स्थितिवाले जीच किस देवलोक में आते है ? ] गाथा 150-152 325 तिर्यक पंचेन्द्रिय और अंतर्दीपवर्ती | दाढाओं पर बसते ] युगलिक तिर्यंच तथा मनुष्य तो भवनपति और व्यन्तर इन दोनों निकायमें ही उत्पन्न होते हैं, परन्तु ज्योतिषी या सौधर्म ईशानमें नहीं, क्योंकि ज्योतिषीमें तो जघन्यसे भी जघन्य स्थिति पल्योपमके आठवें भागकी और वैमानिकमें सौधर्ममें पल्योपमकी कही है, जब उक्त युगलिक जीवोंकी स्थिति पल्योपमके असंख्यातवें भागकी है इससे उसको तुल्य वा हीन कक्षा वहाँ मिल सकती नहीं है। अब शेष एक पल्योपमके आयुष्यवाले युगलिक ( हैमवन्त या हिरण्यवन्त क्षेत्रके ) दो पल्योपम आयुष्यवाले ( वे हरिवर्ष-रम्यक् क्षेत्रके ) तीन पल्योपम आयुष्यवाले (वे देवकुरु-उत्तर कुरुक्षेत्रके तथा सुषम सुषमादि आरामें यथायोग्य असंख्यात सालके आयुष्यवाले भरत, ऐवत क्षेत्रवर्ती युगलिक मनुष्य और तिर्यच ) भवनपतिसे लेकर यथासंभव ईशान यावत् उत्पन्न हो सकते है, क्योंकि निजायुष्यतुल्य स्थिति स्थान वहाँ तक है। अतः ऊपरके कल्पमें सर्वथा निषेध समझ लेना। [ 150 ] अवतरण-प्रस्तुत बात आगे चलाते है। जंति समुच्छिमतिरिया, भवणवणेसु न जोइमाईसुं / जं तेसिं उववाओ, पलिआऽसंखसआऊसु / / 151 / / गाथार्थ-विशेषार्थवत् / // 151 // विशेषार्थ-संमूछिमतिर्यच भवनपति तथा व्यन्तरनिकायमें उत्पन्न होते हैं, परन्तु ज्योतिष्कादि (सौधर्म -ईशान ) निकायमें उत्पन्न होते नहीं हैं, क्योंकि उनका जन्म पल्योपमके असंख्यातवें भाग आयुष्यवाले देवोंमें होता है / संमूछिम तिर्यचकी इससे आगे गति ही नहीं है / [ 151 ) // अष्टमगतिद्वारे प्रकीर्णकाधिकारः // ' अवतरण-पूर्व गति-स्थितिके आधार पर उन जीवोंकी स्थिति पहले बता दी / अब .' अध्यवसायाश्रयी बनती गति जणाते हैं। बालतवे पडिबद्धा, उक्कडरोसा तवेण गारविया / वेरेण य पडिबद्धा, मरिठ असुरेसु जायंति // 152 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् / // 152 / / विशेषार्थ-बालतवे = बाल (अज्ञानरूप) जो तप अर्थात् बाल विशेषण, देकर क्या समझाते है कि बालककी बाल्यावस्था शून्य है, उसी तरह यह तप भी अज्ञानताके साथ करता होनेसे शून्य समझा जाता है / यह बालतप जिनेश्वर भगवन्तके मार्गसे विपरीत, तत्त्वातत्त्व, पेयापेय, भक्ष्याभक्ष्यकी बेहोशीमें (समानता रहित) किया जाता है, अतः इसे
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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