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________________ 286 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 109-110 इगदिसिपंतिविमाणा, तिविभत्ता तंस चउरंसा वट्टा / तंसेसु सेसमेगं, खिव सेस दुगस्स इक्किक्कं / / 109 / / तंसेसु चउरंसेसु य, तो रासि तिगपि चउगुणं काउ / वसु इंदयं खिव, पयर धणं मीलियं कप्पे / / 110 / / .: गाथार्थ-किसी भी एक दिशागत पंक्ति विमानोंको त्रिभागमें समान रूपमें बांट देना, बाँटने पर यदि एक संख्या शेष रहे तो उसे बाँटते आई समान त्रिकोण संख्यामें जोडे, लेकिन यदि दो की संख्या शेष रहे तो एक त्रिकोणमें और एक चौकोनमें जोड देना / फिर न्स प्रत्येक राशिको चारसे गुन लें, वृत्त राशि जो आवे उसमें इन्द्रकका क्षेपण करना क्योंकि वह वृत्त है / इस तरह करनेसे इष्ट प्रतरकी तीनों जातिके विमानोंकी संख्या आएगी, और उस उस कल्पके यथायोग्य प्रतरकी भिन्न भिन्न संख्याको एकत्र करनेसे इष्टकल्पमें त्रिकोणादि विमान संख्या आएगी / // 109-110 // विशेषार्थ-पूर्व गाथामें जिस तरह तीन रीतोंसे आवलिकाकी संख्याका उपाय दर्शाया था उसी तरह यहाँ भी तीन प्रकारसे अर्थात् इष्ट प्रतरका-इष्टकल्पका और समग्र निकायाश्रयी उपाय बतानेका है / उनमें इष्टकल्प और इष्टप्रतरका उपाय गाथार्थ द्वारा कहा जाएगा और उपलक्षणसे समग्र निकायाश्रयीका खुलासा आगे कहा जाएगा / यहाँ प्रथम इष्ट प्रतराश्रयी त्रिकोण, चौकोन और वृत्तसंख्या जाननेका उपाय कहा जाता है / 1. प्रत्येक प्रतरमें त्रिकोणादिविमानसंख्याप्रमाण जाननेका उपाय सौधर्म ईशान कल्पके प्रथम प्रतरमें 62 विमानकी आवलिका है, उसके तीन विभाग करनेसे 20 त्रिकोण, 20 चौकोन और 20 वृत्त आते हैं, ऐसा करने पर दो संख्या शेष रही उसमेंसे एक संख्या त्रिकोणमें जोड़ी और एक चौकोनमें जोड़ी जिससे 21 त्रि०, 21 चौ०, 20 वृत्त, चारों बाजूकी संख्या लानी होनेसे प्रत्येक संख्याको चारसे गुननेसे (214 4 =) 84 त्रि०, (2144 = ) 84 चौकोन और (20x4 = ) 80 वृत्तकी संख्या आवे / फिर वृत्तकी 80 संख्यामें गाथाके नियम अनुसार एक संख्या इन्द्रक विमानकी जोड देना जिससे 81 वृत्त संख्या आएगी / __ प्रतरघन प्राप्त करनेको तीनों संख्याओंको एकत्र करनेसे (84 + 84 + 81 ) २४९की आवलिकागत विमानसंख्या (प्रतरघन ) सौधर्म-ईशान युगलके प्रथम प्रतरकी भी आ सकेगी। इस तरह प्रत्येक प्रतरमें आवलिकागत संख्या भी सहज ही प्राप्त होगी। इस तरह सर्व प्रतरमें त्रिकोणादि संख्या पाठक स्वयं निकाल लें / अत्र सुगमताके लिए यन्त्र देते हैं।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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