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________________ समग्र निकायकी विमान संख्या और प्रमाण ] गाथा-१०८ [ 285 सकल वैमानिकायाश्रयी ( अथवा 62 प्रतरकी अपेक्षासे) प्रथम प्रतर संख्याको 'मुख' संज्ञक समझना, वह मुखसंख्या प्रथम प्रथम प्रतरमें २४९की है, और समग्र निकायाश्रयी 'भूमि' संख्या (अन्तिम प्रतरकी ) पांच है, क्योंकि मुखमें आदि प्रतर संख्याका और भूमिमें अन्तिम प्रतर संख्याका ग्रहण होता है। अतः मुख और अन्तिम प्रतरवर्ती भूमिसंख्याका समास करते (249 + 5 = ) २५४की संख्या आवे, उसका आधा करने पर १२७की संख्या आई / बासठ प्रतरोंकी कुल संख्या लानेकी होनेसे 127 x 62 = ७८७४की संख्या आवलिकागत विमानकी वैमानिक निकायमें आवे / दूसरे प्रकारसे अनुत्तरकल्पके (623) प्रतरमें चारों बाजू एक एक विमान है उस प्रतरसे लेकर चारों दिशावर्ती एक एककी वृद्धिसे एक एक प्रति प्रतर बढ़ाते सौधर्म कल्पके अन्तिम (62) प्रतर तक पहुँचना (अथवा 62 प्रतरमें एक ही दिशावर्ती विमान सख्याका जोड निकालना ) अर्थात् 1-2-3-4-5-6-7-8-9-10-11-12-13-14-15 16-17-18-19-20-21-22-23-24-25-26-27-28-29-30-31-32-33-3435-36-37-38-39-40-41-42-43-44-45-46-47-48-49-50-51-52-5354-55-56-57-58-59-60-61-62 इन सारी संख्याओंकी संकलनाका कुल जोड 1953 आएगा / चारों दिशागत पंक्तियाँ रही हैं और इसलिए चारों बाजू पर संकलना करनी होनेसे 1953 4 4 = ७८१२की कुल पंक्तिगत विमानसंख्या आई / उसमें बासठ प्रतरके मध्यवर्ती 62 'इन्द्रक' विमान मिलानेसे ७८७४की आवलिकाप्रविष्ट विमानसंख्या आवे, अवशिष्ट 8489149 संख्या पुष्पावकीर्णकी आवे / दोनों संख्याओंको एकत्र करने पर ८४९७०२३की कुल विमानसंख्या आवे / इति समग्रनिकायविमानसंख्याप्रमाणम् / / 3. प्रतिप्रतर विमानसंख्याका प्रमाण अब तीसरी रीतसे प्रतिप्रतरस्थानाश्रयी विमानसंख्या जाननी हो तो इष्टप्रतरकी एक ही दिशावर्ती विमानसंख्याको चारसे गुना करके जो संख्या प्राप्त हो उसमें स्वस्थानवर्ती इन्द्र विमान प्रक्षेपित करना जिससे इष्टप्रतरमें आवलिकागत विमानसंख्या प्राप्त होगी। __ प्रतिप्रतराश्रयी पुष्पावकीर्ण विमान जाननेका 'करण' या उसकी संख्या वर्तमानमें उपलब्ध नहीं देखी गई / [108 ] - अवतरण-पहले आवलिकागत संख्या तीन प्रकारसे और पुष्पावकीर्णकी प्राप्त होती दो दो स्थानकी संख्या बताई / अब इसी तरह इष्ट प्रतरमें इष्ट कल्पमें त्रिकोण, चौकोन और वृत्तसंख्या जाननेका करण ग्रन्थकार कहते हैं, वह समग्र निकायाश्रयी त्रिकोणादि संख्याका उपाय है या नहीं यह ऊपरसे कहा जाएगा /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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