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________________ त्रिकोणादि विमान संख्या दर्शक यन्त्र ] ... गाथा 109-110 - [ 287 . इस यन्त्र द्वारा पाठक इष्ट-प्रत्येक प्रतरवर्ती तथा प्रत्येक कल्पवर्ती त्रिकोण, चौकोन और वृत्तकी भिन्न भिन्न संख्या जान सकेंगे। [साथ ही प्रसंगोपात् बताई गई प्रतिप्रतरगत और प्रति कल्पगत आवलिक विमानसंख्या भी देख सकेंगे।] अब शेष बची समग्र निकायाश्रयी त्रिकोण, चौकोन और वृत्तकी पृथक पृथक संख्या तथा समग्र निकायाश्रयी आवलिक विमानसंख्या, वह यहाँ पर दिए गए यन्त्रको देखनेसे जान सकेंगे। // प्रत्येक प्रतरमें आवलिकागत-त्रिकोणादि विमानसंख्या दर्शक यन्त्र // प्रतर |त्रि.सं. चौ.सं. वृत्तसं. सवस. प्रतरसं. प्रतर वृत्तसं. प्रतर सं. - م. م س युगले-२ युगले-४ / - ه م माहेन्द्र 6m - c م - ईशान م - م م 5 1. सौधर्म 3. सनत्कुमार م ه ه ما as: 23856 |2 2 49 |153 कुल 522*712-696-692-2100 / |13|50 / 68 / 68 / 65/201 | 13 कुल सं. 728 *988-972-965-2925 . एक ही दिशावर्ती तेरह प्रतरोंकी तेरह पंक्तियोंकी ७२८की कुल संख्याको चारों पंक्तियों की संख्या लाने के लिए चारसे गुननेसे २९१२की आवलिक विमान संख्या प्रथम युगलमें आवे, उसमें तेरह प्रतरोंके 13 इन्द्रक जोडनेसे 2925 होते हैं। __ बारह प्रतरोंकी एक ही दिशावर्ती ५२२की कुल संख्याको चारसे गुननेसे 2088 होते हैं, उसमें 12 इन्द्रक मिलानेसे २१००की आव० प्रविष्ट संख्या आएगी।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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