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________________ आतप-अंधकार क्षेत्र और सर्वबाह्यमंडल प्ररूपणा ] गाथा 86-90 [ 251 अन्धकार क्षेत्राकृति विचार-अब दोनों सूर्य जब सबसे अन्दरके (सर्वाभ्यन्तर ) मण्डलमें हो तब अन्ध पुरुषकी तरह प्रकाशके पीछे लगे अन्धकारक्षेत्रकी आकृति भी पहले कहा उस तरह ऊर्ध्वमुखवाले पुष्पके जैसी है, उसका मेरुसे लेकर लवणसमुद्र पर्यन्तका लम्बाई प्रमाण आतपवत् समान होता है क्योंकि दिनपति-सूर्य अस्त पाता है तब (प्रकाशवत् ) मेरुकी गुफा आदिमें भी अन्धकार छा जानेसे इस अन्धकार क्षेत्रकी आकृति प्रकाशक्षेत्रवत् समझना / इस अन्धकार क्षेत्रकी सर्वाभ्यन्तर चौडाई मेरुके आगे मेरुके परिधिके 3. जितनी अर्थात् 6324 जितनी है, और लवणसमुद्रकी तरफ अन्तर्मण्डलके परिधिके 2 जितनी अर्थात् 3317 योजनकी होती है, क्योंकि सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें उत्कृष्ट-दिनको अन्धकारक्षेत्र न्यून होता है / ___ इस तरह सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें उत्कृष्ट-दिनको कर्कसंक्रांतिमें सूर्यके आतप तथा अन्धकारक्षेत्रका स्वरूप कहा / अब सर्वबाह्यमण्डलके बारेमें कहते हैं। सर्वबाह्यमण्डलप्ररूपणा-अब जब दोनों सूर्य सर्वसे बाहरके मण्डलमें आते हैं तब तापक्षेत्र और अन्धकारक्षेत्रके आकार आदिका स्वरूप तो पूर्ववत् (तापक्षेत्र प्रसंग पर कहा वैसे ही.) समझना / केवल समुद्रकी तरफ चौडाईके प्रमाण में फरक पड़ने पर सूर्य सर्वबाह्यमण्डलमें दूर गया, इससे समुद्रकी तरफ आतपक्षेत्रकी चौडाई सर्वबाह्यमण्डल परिधिके के जितनी (63663 योजन) और वहीं अन्धकार क्षेत्रकी चौडाई (अन्धकार व्यास) सर्वबाह्यमण्डल परिधिके के जितनी (95494 3 योजन) होती है अर्थात् सर्वाभ्यन्तरमण्डलकी अपेक्षा तापक्षेत्र - न्यून, जबकि अन्धकारक्षेत्रमें 1 की वृद्धि हुई / इति अन्धकाराकृतिविचारः / - बाहरके और अन्दरके मण्डलों में रहे सूर्योंके तापक्षेत्रके अनुसार आतप और अन्धकार क्षेत्रकी वृद्धि-हानि होती है, इससे जब सूर्य सबसे अन्दरके मण्डलमें आवे तब नजदीक और इसीसे तीव्र तेज-तापवाला होता होनेके कारण दिवसके प्रमाणकी वृद्धि (ग्रीष्मऋतुके अन्तमें 18 मुहूर्त) होती है / इस कारणसे अत्र तीव्र ताप लगता है और उसी काल अन्धकार क्षेत्रका अल्पत्व होनेसे रात्रिमान भी अल्प होता है। ___साथ ही दोनों सूर्य जब सर्व बाह्यमण्डलमें हो तब वे बहुत दूर होनेसे मन्द तेजवाले दिखते हैं, और अत्र दिनमान संक्षिप्त-छोटा होता है। जब अन्धकार क्षेत्रकी वृद्धि और इससे रात्रिमान बहुत वृद्धिवाला होता है, जब तापक्षेत्र स्वल्प होता है उस वक्त [हेमन्तऋतुमें ] जगतमें हिम (ठण्ड) भी पड़ता है। ___ साथ ही जिस मण्डलमें तापक्षेत्रका जितना व्यास हो उससे अर्धप्रमाण पूर्व और
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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