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________________ 244 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 86-90 ओर रहे हुए हैं / वर्तमान पाश्चात्य विभाग उन अदृश्य देशोंकी अपेक्षा बहुत थोड़ा कह सकते / अस्तु / ___तब क्या हुआ ? पूर्व निषधके पर रहा भारत सूर्य भरतक्षेत्रमें (अयोध्यामें ) जब उदित हो तब सर्व पाश्चात्य देश-अर्थात् वर्तमान दृष्टिगोचर तथा अदृष्टिगोचर सर्व स्थानों में अन्धकार होता है क्योंकि भारतसूर्य अभी भरतमें (अयोध्यामें) उदित हुआ है अतः ( अयोध्यासे ) आगे तो उस सूर्यके तेजकी लम्बाई समाप्त होनेसे आगे प्रकाश नहीं दे सकता, ऐश्वत सूर्य वो ऐश्वत क्षेत्रकी तरफ उदय पाया हुआ है; अतः इस बाजू पर पश्चिमके अनार्य देशोंकी तरफ कोई प्रकाश देनेकी उदारता कर सके ऐसा नहीं है अत: भरतसे पश्चिम दिशाकी तरफके समग्र क्षेत्रों में और ऐवत क्षेत्राश्रयी पश्चिम दिशाकी तरफके क्षेत्रों में इस तरह दोनों दिशागत क्षेत्रों में दोनों सूर्यो के तेजके अभावमें रात्रिकाल वर्तमान होता है। इससे स्पष्ट मालूम होगा कि भरतमें ( अयोध्यामें ) सूर्योदय हो उस समय उन देशों में सर्वत्र अन्धकार होनेसे पाश्चात्य देशों में सूर्योदय-सूर्यास्तका अन्तर जो है वह स्वाभाविक है। अब भरतमें (अयोध्यामें ) उदय पाता सूर्य, जब उस विकसित मण्डलस्थानके प्रथम क्षणसे आगे निषधस्थानसे खसकने लगा अतः अन्धकार क्षेत्रोंके आदिके प्रथम-क्षेत्रों में (अयोध्याकी हद छोड़कर पासके क्षेत्रों में अर्थात् सूर्य ज्यों ज्यों निषधसे जितना जितना खसकने लगे त्यों त्यों उतने प्रमाण क्षेत्रों में स्वप्रकाशकी स्पर्शना करता जाए ) प्रकाश देना शुरू हो जाए (पुनः अब तो उससे आगेके पश्चिमगत सर्व क्षेत्रोंमें अन्धकार पड़ा ही है) इस तरह भारत सूर्य, उससे भी आगे भरतक्षेत्रकी तरफ आता जाए, सब जितना आगे बढ़े उतने प्रमाणमें अन्धकारवाले क्षेत्रोंको प्रकाशित करता जाए। इस तरह सूर्य ज्यों ज्यों भरतकी तरफ आता जाए त्यों त्यों पाश्चात्य विभागों में उस उस क्षेत्रको, क्रमशः प्रकाशित करता जाए। इस तरह भरतके सूर्योदयके समय अमुक विभागमें सम्पूर्ण अन्धकार होता है, अथवा भरतके सूर्योदयके समय उन उन क्षेत्रों में दिवसके अथवा रात्रिके अमुक अमुक बजे होते हैं उसका कारण अत्र संक्षिप्तमें प्रदर्शित किया गया। इस परसे सविशेष सर्व विचार विद्वान स्वयं कर लेंगे। . भरतक्षेत्रके अलग अलग देशोंमें सूर्योदयादि समयके विपर्यास हेतु.. अधिक समझके लिए भरतके मध्यवर्ती अयोध्यामें जिस काल सूर्योदय हुआ उसी समय किसी भी व्यक्तिकी तरफसे अयोध्याकी अमुक हद छोड़कर पश्चिम दिशागत प्रथमके क्षेत्रों में तार-टेलिफोनादि किसी भी साधन द्वारा पूछा जाए कि आपके यहाँ सूर्योदय हुआ
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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