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________________ भरतक्षेत्रमें सूर्योदयकी गति ] - गाथा 86-90 243 दिवस हो तब विदेहमें सूर्योदय हो ? ऐसी चर्चा पहले भरतके 18 मुहूर्त दिनमान और विदेहके 12 मुहूर्त के रात्रिमान प्रसंग पर की है तद्नुसार यहाँ विचार लें / जब जब दिनमान और रात्रिमानके अल्पाधिक्यके कारण एक दूसरा क्षेत्राश्रयी संशय लगे तब पूर्वोक्त चर्चा ध्यानमें लेकर जितना जितना जहाँ जहाँ दिन-रात्रिमानका विपर्यय होता हो उसके हिसाबसे गिनती करके समन्वय यथायोग्य कर लें / अत्र हम इस चर्चाका विशेष स्फोट नहीं करते / दूसरा यहाँ भरतक्षेत्रमें जो 18 मुहूर्तप्रमाण दिवस कहा है वह भरतके किसी भी विभागमें वर्तित प्रकाशकी अपेक्षासे नहीं कहा, भरतक्षेत्रके किसी भी विभागमें वर्तित प्रकाशकी अपेक्षासे तो आगे जताए अनुसार आठ प्रहर (=30 मुहूर्त) तक भी भरतमें सूर्यका प्रकाश हो सकता है / हमें यहाँ 18 मुहूर्त लेने हैं उन्हें भरतक्षेत्रके किसी भी विभागमें सूर्योदयसे सूर्यास्त समय तकके कालकी अपेक्षासे लेनेके हैं / आगे कहा जाता 15 मुहूर्न अथवा 12 मुहूर्त्तका काल भी इसी तरह समझना है। - निषध पर्वत पर जब सूर्य आवे तब भरतक्षेत्रके मध्यभागमें रही अयोध्या नगरीके और उसके आस-पासकी अमुक अमुक प्रमाण हदमें रहनेवालोंको उस सूर्यका अठारह मुहूर्त तक दर्शन हो, पश्चात् मेरुको स्वभावसिद्ध गोलाकारमें प्रदक्षिणा देता हुआ सूर्य जब निषधसे भरतकी तरफ वलयाकारमें खसका अर्थात् आगे बढ़ा अतः प्रथम जिस अयोध्याकी हदमें ही प्रकाश पड़ता था अब वह आगेके क्षेत्रमें (मूलस्थानसे जितना क्षेत्र सूर्य वलयाकारमें इस बाजू पर खसका उतना ही प्रकाश इस बाजू पर बढ़ा) प्रकाश पडने लगा। . उस सूर्यने आगे कौनसा क्षेत्र प्रकाशित किया ? . भरतक्षेत्रकी अपेक्षासे भारत सूर्य निषधमें उदित हुआ हो तब सूर्यके तेजकी लम्बाई अयोध्या तक होनेसे अयोध्याके प्रदेशमें रहनेवाले वतनीको वह सूर्य उदित रूपमें दीखता है, जब कि अयोध्याकी अन्तिम तक अर्थात् जहाँ तक सूर्यके प्रकाशवाला क्षेत्र होता है, उस क्षेत्रको छोडकर वहाँसे आगेके इस बाजूके समग्र भागमें (भारत सूर्यास्त स्थान . तकके पाश्चात्य क्षेत्रों में ) सर्वत्र अन्धकार होता है। ___ यहाँ प्रश्नपूर्वक समाधानकी पद्धति इसलिए स्वीकारी कि हमारे यहाँ सूर्योदय होता है तब कतिपय पाश्चात्य देशोंमें अन्धकार होता है तथा अमुक अलग अलग क्षेत्रों में रात्रि अथवा दिवसके अमुक अमुक बजे होते हैं; इस तरह हमारी अपेक्षाके सूर्योदय और सूर्यास्त, वहाँके कालकी अपेक्षासे बहुत अन्तरवाले होते हैं / उनके कारण ख्यालमें लानेके लिए हैं। . ये पाश्चात्य देश मध्यभरतसे (अयोध्याकी) पश्चिमकी दिशाकी तरफ-पश्चिम समुद्रकी
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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