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________________ 242 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90 प्रवेश करता जाए त्यों त्यों भरतादि क्षेत्रों में दिनमान (o भाग) घटता जाता है और रात्रिमानमें उतनी ही वृद्धि होती जाती है, इस पूर्वोक्त नियमानुसार सूर्य पुनः 91 // वें मण्डलमें आवे तब समान दिनमान और समान रात्रिमान करनेवाले होते हैं, ये सूर्य बहुत दूर गए होनेसे भरतमें 15 मुहूर्त दिनमान प्रमाण दिवस पूर्ण हो तब महाविदेहमें रात्रिमान भी समान प्रमाणवाला होनेसे वहाँ रात्रिका प्रारम्भ हो, जब कि महाविदेहमें रात्रिका आरंभ हो तब भरत-ऐरवत क्षेत्रमें सूर्योदयका प्रारम्भ होता है, इस तरह समान प्रमाणके दिनमानरात्रिमान होने पर भी, मुहूर्तकी घट-बढ़ न होनेसे किसी भी प्रकारकी हरकत नहीं होती। ___ ये ही सूर्य जब 91 // मण्डलसे आगे बढ़ते बढ़ते सर्वबाहमण्डलके आदि . प्रदेशमें- प्रथम क्षणमें पहुंचे तब, तदाश्रयी पूर्वोक्त प्रमाणवाली 18 मुहूर्त प्रमाणकी रात्रि और 12 मुहूर्त्तके मानवाला दिनमान आ जाता है। इस तरह जब सूर्य सर्वबाह्यमण्डलसे पुनः संक्रमण करके ( उत्तराभिमुख गमन करता हुआ) अन्दरके मण्डलोंमें प्रवेश करके ( भागकी ) दिनमानमें वृद्धि करता हुआ और रात्रिमानमें उतनी ही हानि करता करता, प्रतिमण्डलोंको चरता हुआ जब 91 / / वें मण्डलमें पुनः लौटे तब पुनः उस उत्तरायणमें 15 मुहूर्त्तका दिनमान और 15 मुहूर्त रात्रिमान यथार्थ होता ( तब हमारे प्रथम वर्षकी चैत वदि 9 होती ) ऐसा करते करते सूर्य जब सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें प्रथम क्षणमें आवे तब पूर्वोक्त 18 मुहूर्तप्रमाणका दिनमान और 12 मुहूर्तप्रमाणका २४७रात्रिमान यथार्थ होता। इस तरह एक संवत्सर काल पूर्ण होता है। ___ इस तरह एक अहोरात्र 91 // वें मण्डलमें दक्षिणायनका और पुनः लौटते 91 // वें मण्डलमें एक अहोरात्र उत्तरायणका इस तरह एक संवत्सरमें दो अहोरात्र और 10 अहोरात्र अलग अलग मास-तिथिवाले एक युगमें समान प्रमाणवाले होते हैं / इन दो दिवसोंको (-अहोरात्रको ) छोड़कर सारे संवत्सरमें ऐसा एक भी अहोरात्र नहीं होता कि जो अहोरात्र दिनमान और रात्रिमानके समान प्रमाणवाला हो अर्थात् किंचित किंचित् घट-बढ़ प्रमाणवाला तो होता ही है / शेष सर्व मण्डलोंमें २४८रात्रिमान तथा दिनमान यथायोग्य सोचेंविचारें / ___ अथ जब भरतमें 13 मुहूर्त्तका दिनमान हो और महाविदेहमें 12 घण्टेकी रात्रि हो तब क्या समझना ? तो भरतमें (सूर्यास्तके पूर्व ) एक मुहूर्त्तसे किंचित न्यून सूर्याश्रया 247. सर्वाभ्यन्तरमण्डलसे बाह्यमण्डलमें जाने पर दक्षिणायनमें 15 मुहूर्त्तका दिवस और 15 मुहूर्त की रात्रि प्रथम वर्षके कार्तिक वदि दुज या तीजको होता है / 248. प्रत्येक मण्डलका रात्रिमान-दिनमान अत्र देने पर विस्तार बहुत बढ़ जानेके कारण पाठक स्वयं निकाल ले, और इतना विषय समझ लेने पर वे जरूर (प्रमाण ) निकाल भी सकेंगे /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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