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________________ अढाई दीपके बाहर मनुष्यका जन्ममरणकाअभाव ] गाथा-५६ [123 उस गर्भवती स्त्रीको वहाँसे उठाकर मनुष्यक्षेत्रमें रख देता है। परन्तु मनुष्यक्षेत्रके बाहर किसीका ‘जन्म तो कभी हुआ नहीं है, होता नहीं है और होगा भी नहीं। शंका--तो क्या मरण किसी तरह संभवित है ? अर्थात् अन्तर्मुहूर्तमें ही जिसका आयुष्य समाप्त होनेवाला है ऐसे किसी मनुष्यका कोई लब्धिधारी देव अपहरण करके उसे नरक्षेत्रके बाहर रखे तो क्या मरण संभवित है या नहीं ? समाधान-मरण किसी भी समय नहीं हो सकेगा। पूर्वके अनुसार अपहरण करनेवाले देवका चित्त अवश्य चलित हो जाता है और इसलिए उसका अथवा अन्य किसी देवादिकका सहयोग पाकर मनुष्यक्षेत्रमें तुरन्त ही आये और वहीं मृत्यु पाये, परन्तु इस अढाईद्वीपके बाहर किसी समय किसी भी मनुष्यका १३“जन्म या मरण 38 हुआ नहीं, होता नहीं और होगा भी नहीं, ऐसा सर्वज्ञपरमात्माका त्रिकालाबाधित शासन कथन करता है।' यद्यपि विद्याधर, जंघाचरण तथा विद्याचारण मुनिवर और अन्य कोई लब्धिधारी उत्कृष्ट प्रकारके तपोनुष्ठानसे प्राप्त की हुई यथायोग्य लब्धिद्वारा नन्दीश्वरादि द्वीपमें परम पवित्र शाश्वती जिनप्रतिमाओंके दर्शनके लिए भक्तिसेवा करने जाते हैं। परन्तु उनके भी जन्म-मरण तो इस क्षेत्रमें ही होते हैं। ऐसे ऐसे अनेक कारणोंसे और उसकी उत्तरदिशामें ही मनुष्य बसनेसे उस पर्वतको मानुषोत्तर कहा जाता है। जिस तरह मनुष्यक्षेत्रके बाहर मनुष्योंके जन्म-मरण नहीं हैं उसी तरह मनुष्यक्षेत्रके बाहर आगे कहे जानेवाले पदार्थ-भाव भी होते नहीं हैं। जिस तरह अढाईद्वीपमें गंगा, सिंधु आदि महा नदियाँ शाश्वती १४०वर्तित हैं, वैसी 138-139. केवल महर्षिपुरुषोंके कथनानुसार एक ही अपेक्षासे-अर्थात् उपपात और समुद्घातके प्रसंग पर- मनुष्यक्षेत्रके बाहर भी जन्म या मरण सिद्ध होता है अर्थात् कोई आत्मा मरणसमय पर मारणान्तिकसमुद्घात करनेके लिए अपने बहुत आत्मप्रदेशोंको क्षेत्रके बाहर उत्पन्न होनेके स्थान पर फेंके, उस समय बहुत आत्मप्रदेश बाहर प्रक्षेपित हों तब वह समुद्घात अवस्थामें मनुष्य-आयुष्य तथा मनुष्यगति भोगता है और इलिकागतिसे आत्मप्रदेशको वहाँ फेंकनेसे मनुष्यका मरण मनुष्य क्षेत्रके बाहर हुआ है ऐसा कहा जा सकता है। वैसे मनुष्यक्षेत्रके बाहर वर्तित कोई एक जीवकी अगर मृत्यु हुई और अब वक्रागतिसे उसे मनुष्यक्षेत्रमें मनुष्यरूपमें समुत्पन्न होना है, परन्तु वक्रागति एक समयसे अधिक समयवाली होनेसे मनुष्य क्षेत्रके बाहर दूसरे समय रहकर, फिर उसे जिस क्षेत्रमें उत्पन्न होना है वहाँ हो, ऐसा प्रसंग बने तब वक्रागतिमें परभवका आयुष्य ( उत्पन्न होनेकी जो मनुष्यगति है उसका ही) गिनतीमें प्रयोजित होनेसे मनुष्यगतिका उद्भव अढाईद्वीपके बाहर स्वीकृत किया है। . 140. अशाश्वती नदियाँ होनेका निषेध संभवित नहीं, और अशाश्वता सरोवर आदि जलाशय
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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