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________________ 122 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-५६ तो मात्र मानुषोत्तर पर्वतके अन्दरके क्षेत्रमें ही। जब बस्ती ही नहीं है तो फिर मनुष्यका जन्म-मरण तो कहांसे संभव हो ? अस्तु / शंका-भले ही बस्तीके अभावमें जन्म-मरण न हो, परन्तु यहाँसे कोई एक मनुष्य अढ़ाईद्वीपके बाहर किसी भी कारणवश गया हो और वहीं उसके आयुष्यकी समाप्तिका अवसर होनेका हो तो उतने अल्प समयमें मृत्यु होनेका प्रसंग क्या उपस्थित न होगा ? समाधान-सामान्य मनुष्य तो यहाँसे वहाँ जानेका सामर्थ्य स्वयं रख नहीं सकता, परन्तु संभवतः यदि कोई देव, दानव तथाविध वैर-विरोधादिके कारण अपना वैर लेनेके लिए, उस मनुष्यको अपने स्थानसे उठाकर मनुष्यक्षेत्रके बाहर रख दे, क्योंकि वैसा करनेसे 'वह मनुष्य किसी भी प्रकारके सुखाश्रयोंके बिना सूर्यके प्रचण्ड तापसे अथवा विशेष ठण्डसे खड़े-खड़े ही शोषित होकर मृत्यु पाये अथवा अन्यविध प्राणघातक उपद्रव हों' इस प्रकारकी बुद्धिसे १३°मनुष्यक्षेत्रके बाहर वे ले जाए तथापि लोकानुभावसे और तथाविध क्षेत्रके प्रभावसे बाहर ले जानेवाले उस देवको अथवा अन्य किसी गमनागमन करते देव, दानव अथवा विद्याधरादिके दुःखसे पीड़ित इस मनुष्यको देखकर सद्बुद्धि जागे और आत्मामें दयाका प्रादुर्भाव होनेसे उसे पुनः मनुष्यक्षेत्रमें रख देता है। पुनः शंका-आपका कहना ठीक है, परन्तु नन्दीश्वरादि द्वीपमें गए विद्याधर आदि नरक्षेत्रके बाहर अपनी पत्नियों के साथ संभोग करते हैं तो क्या वहाँ मनुष्यका गर्भरूप जन्म नहीं होता ? साथ ही मनुष्यलोककी कोई भी स्त्री, कि जिसे तुरन्त प्रसूति होनेवाली उपस्थित हो तो वहाँ क्या मनुष्यजन्म सम्भव नहीं हो सकता ? समाधान-भले ही विद्याधर स्वभार्याओं के साथ संभोग व्यवहार करें, परन्तु गर्भधारणका संयोग तो क्षेत्रप्रभावसे प्राप्त ही नहीं होता। ( अर्थात् गर्भ धारण ही नहीं होता) अब स्त्रीकी प्रसूतिका प्रसंग प्रायः आये नहीं, तो भी कदाचित् जन्म होनेका अवसर समीप आ जाए तो, उसे लानेवाले देवका मन ही तथाविध क्षेत्रप्रभावसे विपर्यासभावको प्राप्त किए बिना रह सकता ही नहीं। कदाचित् वह निष्ठुर-हृदयवाला देव उस स्त्रीको नरक्षेत्रमें लाकर न रखे तो अन्य कोई भी देव या विद्याधर अचानक आ ही जाएँ और . 137. अढ़ाईद्वीपमें मनुष्यक्षेत्र अमुक अमुक हैं उनमें भी अमुक समुद्र तथा वर्षधरादि पर्वत आदि स्थानोंमें जन्मका अभाव है। किसी विद्याधरादिके अपहरणसे अथवा स्वयं गया हुआ हो और वापस आ सकनेमें असमर्थ हो तो अढाईद्वीपवर्ती उन उन क्षेत्रोंमें उनकी मृत्यु और जन्म पदाचित् संभवित हो सकते हैं।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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