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________________ मनुष्यक्षेत्रका वर्णन ] गाथा-५६ [121 पणयाललक्ख जोयण, नरखेत्तं तत्थिमे सया भमिरा / नरखित्ताउ बहिं पुण, अद्धपमाणा ठिया निच्चं // 56 // गाथार्थ-पैंतालीस लाख (4500000) योजन प्रमाण मनुष्यक्षेत्र है, उसमें इन ज्योतिषीयोंके विमान सदाकाल परिभ्रमण करनेवाले हैं और मनुष्यक्षेत्रके बाहर ज्योतिषीयोंके जो विमान हैं वे पूर्वोक्त लम्बाई, चौड़ाई और उचाईकी अपेक्षासे अर्ध प्रमाणवाले तथा सदाकाल स्थिर हैं / / 56 / / विशेषार्थ-गाथार्थमें पैंतालीस लाख योजनका मनुष्यक्षेत्र कहा गया, वह किस हिसाबसे है ? वह यहाँ बताया गया है। मालपुआके आकारमें विद्यमान एक लाख योजन प्रमाण जम्बूद्वीपके बाद दो लाख योजन विस्तारवाला लवण समुद्र है, तदनन्तर उससे दुगुना अर्थात् चार लाख योजन विस्तारवाला धातकीखण्ड आया है और तदनन्तर उससे दुगुना अर्थात् आठ (8) लाख योजन विस्तारवाला कालोदधिसमुद्र है; तदनन्तर उससे दुगुना अर्थात् सोलह (16) लाख योजन विस्तारवाला पुष्करवरद्वीप आया है। हमें तो मनुष्यक्षेत्रका प्रमाण कहनेका होनेसेमनुष्यक्षेत्र अर्ध पुष्करवरद्वीप तक है, जिससे आठ (8) लाख योजन प्रमाण अर्धपुष्करवरद्वीप पर्यन्त मनुष्यक्षेत्र कहा जाता है-अर्थात् जम्बूद्वीपसे एक तरफ कुल 22 लाख योजन अर्धपुष्करवरद्वीप तकके हुए, वैसे ही जम्बूद्वीपसे दूसरी बाजूके भी अर्धपुष्करवरद्वीप तक 22 लाख योजन हुए, दोनों बाजुका कुल मिलकर 44 लाख योजन क्षेत्र हुआ, और एक लाख योजनप्रमाण क्षेत्र जम्बूद्वीपका, इस तरह सर्व मिलकर कुल 45 लाख योजनका मनुष्यक्षेत्र है। इस मनुष्यक्षेत्रके चारों ओर अथवा पुष्करार्ध पूरा होते ही तुरन्त उसके चारों ओर मानुषोत्तर नामका पर्वत अर्ध यवाकारवाला अथवा सिंहनिषादी आकारवाला मानो मनुष्यक्षेत्रके रक्षणके लिए किलेके समान हो वैसा शोभायमान है। प्रसंगानुसार मानुषोत्तरपर्वतका यत्किंचित् स्वरूप यहाँ कहा जाता है। प्रश्न-मानुषोत्तर अर्थात् क्या ? उत्तर-मानुषोत्तर अर्थात् जिसकी उत्तरमें मनुष्य हैं. इसीलिए वह मानुषोत्तर कहलाता है, अथवा जिस क्षेत्रके बाहर मनुष्योंका जन्म तथा मरण न हो उस क्षेत्रकी मर्यादा बाँधनेवाला जो पर्वत है, वह मानुषोत्तर कहलाता है। इस पर्वतकी चौड़ाई पूर्ण होनेके बाद अर्थात् उस पर्वतकी अन्तिम सीमासे लेकर प्रतिपक्षी दिशामें (परोक्ष दिशामें ) तिच्छोलोकके अन्तभाग तक मध्यके किसी भी स्थानमें मनुष्योंकी बस्ती नहीं है, अगर है
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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