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________________ 120 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 55 समुद्रमें ही हैं और वे ऊर्ध्वलेश्या (= प्रकाश ) विशेषवाले हैं / [53-54] (प्र० गा० सं० 13) अवतरण-चन्द्र-सूर्य आदि ज्योतिषीयोंके विमानोंका प्रमाण कहते हैं जोयणिगसट्ठिभागा, छप्पन्नऽडयाल गाउ-दु-इगद्धं / चन्दाइविमाणाया-मवित्थडा अद्धमुच्चत्तं // 55 // गाथार्थ-एक योजनके छप्पन बटे इकसठवाँ भाग (4), एक योजनके अडतालीस बटे इकसठवाँ भाग (46), दो कोस, एक कोस और आधा कोस प्रमाण अनुक्रमसे चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा तारोंके विमानोंकी लम्बाई, चौड़ाई जाने और ऊँचाई उससे अर्धप्रमाण जानें / यह योजन प्रमाणांगुलका समझे। // 55 // विशेषार्थ अब उन ज्योतिषीयोंके विमानोंका आयाम-विष्कंभ और ऊँचाईके प्रमाणों की विशेषऋद्धिवन्ताके क्रमानुसार व्याख्या करनेसे एक योजनके इकसठ विभाग करें, उन इकसठ (61) विभागोंमेंसे छप्पन (56) भाग प्रमाण लम्बा चन्द्रका विमान है। वैसे ही एक योजनके अड़तालीस बटे इकसठवाँ भाग प्रमाण लम्बा सूर्यका विमान है। ग्रहोंके विमान दो कोस लम्बे होते हैं। नक्षत्रोंके विमान एक कोस प्रमाण और पाँचवाँ तारोंके विमान अर्धकोस प्रमाण लम्बे होते हैं। चौड़ाई भी जितनी लम्बाई कही गई है, उतनी ही समझे, इससे ये विमान चारों ओरसे समान प्रमाणवाले होते हैं। उन विमानोंको ऊँचाईमें अपने-अपने आयाम तथा विष्कंभसे अर्ध प्रमाणवाले जानें। . अर्थात् चन्द्र के विमान ऊँचाईमें एक योजनके 28 बटे 61 (36), सूर्यके विमान ऊँचाईमें एक योजनके 24 बटे 61 (34), ग्रहोंके विमान ऊँचाईमें एक कोस ऊँचे, नक्षत्रोंके विमान आधे कोस और तारोंके विमान 1 बटे 4 (3) कोस अर्थात् 0 / (पाव) कोस ऊँचे होते हैं। यह तीनों प्रकारका प्रमाण मनुष्यक्षेत्रमें वर्तित चरज्योतिषीयोंका जाने / इतना विशेष समझे कि-अढ़ाईद्वीपके बाहरके नक्षत्र भिन्न भिन्न आकारके तथा तपनीय (सुवर्ण) वर्णके हैं / [55] / अवतरण-मनुष्य क्षेत्रका प्रमाण कहने के साथ मनुष्यक्षेत्रमें ज्योतिषीयोंके विमान चर होते हैं यह बतानेके लिए मनुष्यक्षेत्रसे बाहर ज्योतिषीयोंके विमान स्थिर हैं वे तथा उनका प्रमाण कितना है ? इसका वर्णन करते हैं;(सबमरीन) नामसे परिचित युद्धस्टीमर समुद्रके अथाह जल्में डुबकी लगा-लगाकर तेजीसे सैकड़ों मील तय कर लेते थे। जलमें रहने पर भी उन स्टीमरोंके द्वारोंमें जलप्रवेश नहीं हो पाता। उनमें हवा, प्रकाश आदि सभी प्रकारकी अनुकूलता रहती है तो फिर इन शाश्वत विमानोंके लिये तो सोचना ही क्या ? जैसे वाटरप्रुफ वस्त्रों पर बरसातकी असर नहीं होती।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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