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________________ * मोक्ष के निकट पहुँचाने वाला उपकारी समाधिमरण ३९३ निरुपाधिक निवृत्ति प्राप्त करनी चाहिए। साथ ही उसे ज्ञानी पुरुषों की संगति करनी चाहिए। सभी जीवों से क्षमायाचना भी कर लेनी चाहिए। ऐसा करने से वह साधक अपने साध्य को नहीं भूलता और मरणादि प्रसंग उपस्थित होने पर सच्चा योद्धा बन जाता है। इस पर विचार करके समाधिमरण की तैयारी के रूप में सद्विचार, कषाय की मन्दता-उपशान्तता या क्षय, मोह और देहाध्यास के त्याग आदि के लिए द्रव्य-क्षेत्र -काल-भाव से निवृत्ति का सेवन करना चाहिए। और आज से ही सत्संग, सत्समागम, सद्ग्रन्थों का वाचन, सत्पुरुषों और उनकी वाणी का बहुमानपूर्वक श्रवण-मनन, वैराग्य तथा उपशमादि की आराधना करनी अनिवार्य है। यदि सम्यग्दृष्टिपूर्वक समाधिमरण की आराधना इस भव में इसी प्रकार की जाए तो अनेक भवों का भ्रमण रुक जाता है, जन्म-मरण का अन्त भी हो सकता है । ' " अकस्मात् और उपसर्गों से सम्बन्धित प्रसंगों में किये जाने वाले समाधिमरण को देखते हुए उसे दो भागों में विभक्त कर सकते हैं - आकस्मिक समाधिमरण और संलेखनापूर्वक समाधिमरण । आकस्मिक समाधिमरण को आपत्कालीन समाधिमरण भी कहा जा सकता है। परन्तु दोनों ही प्रकार के समाधिमरणों में शान्ति, समाधि, धैर्य आदि का होना अनिवार्य है। १. 'समाधिमरण' से भाव ग्रहण, पृ. २२७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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