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________________ ॐ मोक्ष अवश्यम्भावी : किनको और कब? * ३२७ * माकन्दी-पुत्र के प्रश्न का आशय यह है-जगत् के समस्त प्राणियों के जीवन के आधार, सबको आधार देने वाले, भूख-प्यास मिटाने वाले पृथ्वीकायिक, अप्कायिक तथा छाया, फल, फूल, लकड़ी, औषध आदि के रूप में उपयोगी वनस्पतिकायिक जीव हैं। ये स्वयं सर्दी, गर्मी, वर्षा, ताप-ठंड आदि सहकर तथा अपने शरीर का बलिदान देकर भी जगत् के जीवों को जिलाते हैं, उपकार करते हैं, तो इसके बदले में इन्हें क्या मिलता है ? भगवान ने कहा-"जो पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीव कापोतलेश्या वाले हैं, वे मरकर अनगाररहित (सीधा) मनुष्य-शरीर प्राप्त करते हैं। फिर उस मनुष्य-भव में ही मोक्ष की उत्तम साधना करके केवलज्ञान उपार्जित करते हैं, तत्पश्चात् सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं, सदा-सदा के लिये जन्म-मरणादि दुःखों का अन्त करते हैं।' यहाँ तक कि भगवान से अन्य अनगारों द्वारा इसी प्रश्न को दुबारा पूछने पर उन्होंने कापोतलेश्यी पृथ्वीकायिकादि त्रय की सिद्धि-मुक्ति का तो समर्थन किया ही, साथ ही यह भी बताया कि कृष्ण और नीललेश्या वाले पृथ्वीकायिक, जलकायिक और वनस्पतिकायिक जीव भी कथंचित् मानव-भव पाकर अन्त में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाते हैं। शालवृक्ष, शालयष्टिका और उदुम्बरयष्टिका को . भविष्य में मानव-भव पाकर मोक्ष-प्राप्ति भगवान महावीर से पूछा गया-भंते ! सूर्य की गर्मी से पीड़ित, तृषा से व्याकुल, दावानल की ज्वाला से झुलसा हुआ यह (प्रत्यक्ष दृश्यमान) शालवृक्ष का जीव यहाँ से काल करके (मरकर) कहाँ उत्पन्न होगा? उत्तर में भगवान ने कहागौतम ! यह शालवृक्ष का जीव इसी राजगृह नगर में पुनः शालवृक्ष के रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ वह (पूर्व-पुण्यराशि के फलस्वरूप) अर्चित, वन्दित, पूजित, सत्कृत और सम्मानित, दिव्य (दैवीगुणयुक्त) सत्य, सत्यावपात, सन्निहित प्रातिहार्य (पूर्व-भव सम्बन्धी देवों द्वारा प्रातिहार्य-सामीप्य-प्राप्त) होगा। इसका चबूतरा (पीठ) लीपा-पोता हुआ तथा पूजनीय होगा। वहाँ से आयुष्य पूर्ण (मर) कर महाविदेह क्षेत्र में मनुष्यरूप में जन्म लेकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होगा। इसी प्रकार शालयष्टिका भी (पूर्व गुणों से युक्त) विन्ध्याचल के पादमूल (तलहटी) में स्थित माहेश्वरी नगरी में शाल्मली (सेमर) वृक्ष के रूप में पुनः उत्पन्न होगी। वहाँ वह अर्चित यावत् पूजनीय होगी। फिर वहाँ से आयुष्य पूर्ण कर वह भी महाविदेह क्षेत्र में मनुष्यरूप में उत्पन्न होकर उत्तम साधना करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होगी। . इसी प्रकार उदम्बरयष्टिका (उदुम्बर की शाखा) भी यहाँ से काल करके पाटलिपुत्र में पाटलीवृक्ष के रूप में पुनः उत्पन्न होगी। वहाँ वह अर्चित, पूजित . १. भगवतीसूत्र, खण्ड ३, श. १८, अ. ३, सू. १-७, पृ. ६४८-६८० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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