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________________ [ मोक्ष अवश्यम्भावी: किनको और कब ? ) मोक्ष की अवश्यम्भाविता के अधिकारी का विचार करना आवश्यक निश्चयनय की दृष्टि से समस्त जीवों की शुद्ध आत्माओं में परमात्म-शक्ति = मोक्षशक्ति विद्यमान है। किन्तु उसकी अभिव्यक्ति सवमें नहीं हो पाती, क्योंकि एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों में चेतना का विकास तथा कर्मों का अनावरण न होने से वह शक्ति अभिव्यक्त, जाग्रत एवं अनावृत नहीं हो पाती। रहे पंचेन्द्रिय जीव; उनकी चेतना अधिक विकसित होते हुए भी नारक, तिर्यंच और देव तो आत्मा पर छाये हुए कर्मों को सर्वथा अनावृत नहीं कर पाते। मनुष्य पंचेन्द्रिय जीव है, अधिक विकसित चेतना वाला और सर्वाधिक बुद्धिशील है, उनमें भी जो अभव्य (मोक्ष-प्राप्ति के सर्वथा अयोग्य) हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, अविरत हैं, अतिप्रमत्त हैं, तीव्र कषायाविष्ट हैं, जिनके योगों की प्रवृत्ति पापकर्मों में अधिक है, जिन्हें धर्म के संस्कार बिलकुल प्राप्त नहीं हैं, जिन्हें सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का बोध बिलकुल नहीं है, मोहग्रस्त होने के कारण जिन्हें तीव्र मिथ्यात्व दशा के कारण मोक्ष = बन्धन से मुक्ति के प्रति जरा भी रुचि या उत्साह ही नहीं है अथवा जो मोक्ष का सस्ता नुस्खा खोजते फिरते हैं या किसी देवी-देव भगवान या अवतार से या परमात्मा से मोक्ष प्रदान कर देने या मोक्ष-प्राप्ति का वरदान प्राप्त करने की आशा में बैठे हैं, उन्हें मोक्ष = सर्वकर्ममुक्तिरूप या स्व-रूपावस्थान रूप पूर्ण मोक्ष प्राप्त नहीं हो पाता। ___ ऐसी स्थिति में प्रश्न होता है कि समस्त कर्मों से सर्वथा मुक्तिरूप मोक्ष किन-किनको, कैसे-कैसे और कितनी कालावधि के पश्चात् अवश्य प्राप्त हो जाता है, सर्वज्ञ आप्त अर्हन्त परमात्मा ने किनके लिये मोक्ष की गारंटी दी है ? फिर वह पूर्ण मोक्ष उसी भव (जन्म) में हो, एक भव करने के बाद हो, तीन भव करने के बाद हो, चाहे पाँच, आठ अथवा इससे अधिक भव करने के बाद प्राप्त हो, उसकी अवश्यम्भाविता, निश्चितता किन-किनको है? किस-किस विधि-विधान से या साधना-आराधना से है? इस विषय में जैनदर्शन की दृष्टि से प्रत्येक मुमुक्षु आत्मार्थी भव्य जीव को अवश्य ही चिन्तन-मनन-विचार या. मन्थन करना आवश्यक है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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