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________________ गुणस्थानों में जीवस्थान आदि की प्ररूपणा ४११ आठ का बन्धस्थान, दसवें में ६ का बन्धस्थान और ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में एक का बन्धस्थान होता है। १४ वाँ गुणस्थान सर्वथा अबन्धक है। (७-८) गुणस्थानों में सत्ता और उदय की प्ररूपणा पहले से लेकर दसवें सूक्ष्म-सम्पराय गुणस्थान तक आठ कर्मों की सत्ता और आठ ही कर्मों का उदय है। अर्थात्-आदि के १० गुणस्थानों में सत्तागत तथा उदयमान आठों ही कर्म पाये जाते हैं। ग्यारहवें उपशान्तमोह गुणस्थान में सत्ता आठ कर्म की और उदय सात कर्म का होता है। अर्थात्-ग्यारहवें गुणस्थान में मोहनीय कर्म सत्तागत रहता है, किन्तु उदयमान नहीं। इसलिये उसमें सत्ता ८ कर्म की और उदय सात कर्म का है। बारहवें गुणस्थान में मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय हो जाने से सत्ता और उदय, दोनों सात कर्मों के हैं। तेरहवें सयोगिकेवली और चौदहवें अयोगिकेवली गुणस्थान में सत्ता और उदय चार कर्मों के हैं; क्योंकि इन दोनों गुणस्थानों में चार घातिकर्म सर्वथा नष्ट हो जाते हैं, इसलिए इनमें सत्तागत और उदयमान चार अंघातिकर्म ही हैं। सारांश यह है कि सत्तास्थान पहले ग्यारह गुणस्थानों में आठ का, बारहवें में सात का और तेरहवें-चौदहवें में चार कर्मों का है, जबकि उदयस्थान पहले दस गुणस्थानों में आठ का, ग्यारहवें और बारहवें में सात का, तथा तेरहवें और चौदहवें में चार का है। (९) गुणस्थानों में उदीरणा की प्ररूपणा उदीरणा की प्ररूपणा जानने से पूर्व यह नियम ध्यान में रखना आवश्यक है कि जो कर्म उदयमान हो, उसी की उदीरणा होती है, अनुदयमान कर्म की नहीं। और जब उदयमान कर्म आवलिका-प्रमाण शेष रहता है, तब (उस समय) उसकी - उदीरणा रुक जाती है। · · तृतीय गुणस्थान को छोड़कर पहले से प्रमत्तसंयत नामक छठे गुणस्थान पर्यन्त पांच गुणस्थानों में सात या आठ कर्म की उदीरणा होती है। आयु की उदीरणा न होने के कारण सात कर्म की और होने के समय आठ कर्म की समझनी चाहिये। उक्त नियम के अनुसार आयु की उदीरणा उस समय रुक जाती है, जिस समय वर्तमान भव की आयु आवलिका-प्रमाण शेष रहती है। यद्यपि वर्तमान भवीय आयु की १. (क) आसुहुमं संतुदये, अट्ठ वि मोहविणु सत्त खीणमि। .... चउ चरिम-दुगे अट्ठ उ, संते उपसंति सत्तुदए॥६०॥ -चतुर्थ कर्मग्रन्थ (ख) चतुर्थ कर्मग्रन्थ गा० ६० विवेचन (पं० सुखलाल जी), पृ० १८९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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