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________________ २१८ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ १. कृष्ण लेश्या-कज्जल के सदृश कृष्णवर्ण के कलुषित लेश्याजातीय पदगलों के सम्पर्क से आत्मा में ऐसे क्रूर, अतिरौद्र परिणाम होते हैं, जिनसे हिंसादि पांच आस्रवों में प्रवृत्ति होती है, मन-वचन-काय पर कोई संयम (नियन्त्रण) नहीं रहता, स्वभाव मात्सर्य, ईर्ष्या, द्वेष एवं क्लेश से परिपूर्ण क्षुद्र बन जाता है, गुण-दोष, या (पृष्ठ २१७ का शेष) लदी हुई बड़ी-बड़ी शाखा वाले इस वृक्ष को ही काट गिराना अच्छा है।" यह सुन दूसरा बोला-"वृक्ष को काटने से क्या फायदा? केवल शाखाओं को काट दो।" तीसरे व्यक्ति ने कहा-"यह भी ठीक नहीं। छोटी-छोटी शाखाओं के . काटने से भी काम चल सकता है।" चौथे ने कहा-"शाखाएँ भी क्यों काटें? फलों के गुच्छों को तोड़ लो।" पांचवाँ बोला- "गुच्छों से हमें क्या . मतलब?" उनमें से कुछ फलों को ही ले लेना उचित है।" अन्त में छठे पुरुष ने कहा- ये सब विचार निरर्थक हैं; क्योंकि हम लोग जिन्हें चाहते हैं, वे फल तो नीचे भी गिरे हुए हैं। क्या उन्हीं से अपना प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकता?" (ख) कोई छह पुरुष धन लूटने के इरादे से जा रहे थे। रास्ते में किसी गाँव को पाकर उनमें से एक बोला-"इस गाँव को तहस-नहस कर दो-मनुष्य, पशु, पक्षी, जो कोई मिले, उन्हें मारो और धन लूट लो।" यह सुनकर दूसरा बोला-"पशु-पक्षी आदि को क्यों मारा जाए? केवल मनुष्यों को ही मारो।" तीसरे ने कहा-"बेचारी स्त्रियों की हत्या क्यों की जाए? पुरुषों को ही मारा जाए।" चौथे ने कहा-"सभी पुरुषों को नहीं, जो सशस्त्र हों, और विरोध करें, उन्हीं को मारो।" पांचवें ने कहा-"जो सशस्त्र पुरुष भी विरोध नहीं करते, उन्हें क्यों मारा जाए?" अन्त में छठे पुरुष ने कहा-"किसी को भी मारने से क्या लाभ? जिस प्रकार से धन-हरण किया जा सके, उस प्रकार से उसे बटोर लो और ले चलो, किसी को मारो मत। एक तो धन लूटना और दूसरे उसके मालिकों को मारना, यह ठीक नहीं।" इन दो दृष्टान्तों से लेश्याओं का स्वरूप स्पष्ट रूप से जाना जा सकता है। प्रत्येक दृष्टान्त के छह-छह पुरुषों में पूर्व-पूर्व पुरुष के परिणामों की अपेक्षा उत्तरउत्तर पुरुष के परिणाम शुभ, शुभतर और शुभतम पाये जाते हैं,अर्थात्-उत्तरउत्तर पुरुष के परिणामों में संक्लेश की न्यूनता और मृदुता की अधिकता पाई जाती है। आशय यह है कि प्रथम पुरुष के परिणाम को कृष्णलेश्या, दूसरे के परिणाम को नील लेश्या, तीसरे पुरुष के परिणाम को कापोतलेश्या. चौथे परुष के परिणाम को तेजोलेश्या, पांचवें पुरुष के परिणाम को पद्मलेश्या और छठे पुरुष के परिणाम को शुक्ललेश्या समझना चाहिए। -आवश्यक हारि. वृत्ति पृ. ६४५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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