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________________ निशीथ सूत्र के उस बिना सम्मुखीन - उद्दिष्ट व्यक्ति का कार्य न चल पाए या कर पाने में कठिनाई हो। उद्दिष्ट व्यक्ति को अपने कार्य में उसके सहयोग या सहाय्य की आवश्यकता अथवा अपेक्षा अपरिहार्य रूप में प्रतीत होती रहे। जो भिक्षु अपनी विद्या, लब्धि - योग सिद्धि, निमित्त ज्ञान तथा ज्योतिष इत्यादि द्वारा राजा आदि को इतना प्रभावित कर ले कि वे एक प्रकार से उसके सहयोग के मुखापेक्षी बन जाएं। जब भिक्षु राजा आदि को अपने से इतना प्रभावित मानता है, तब उसमें स्वच्छन्दता आना आशंकित है, जो साधुत्व के प्रतिकूल है। साधु में तो समता, धीरता, गम्भीरता आदि गुण होने चाहिएं, उसे आत्म-धर्म में अभिरत रहना चाहिए। उसे किसी को प्रभावित करने की आवश्यकता नहीं है। स्व-कल्याण के साथ-साथ उसका. कार्य तो जन-जन को धर्म का उपदेश और आत्मोपासना की प्रेरणा प्रदान करना है। इसीलिए राजा आदि को अर्थी या अपने सहयोग अथवा सहाय्य का अपेक्षी बनाना स्ववशगत करना दोषयुक्त है। अत एव वैसा करने वाला भिक्षु प्रायश्चित्त का भागी बतलाया गया है। अखण्डित व सचित्त (एक जीवी) अन्न-आहार का प्रायश्चित्त जे भिक्खू कसिणाओ ओसहीओ आहारेइ आहारेतं का साइजइ॥ १९॥ कठिन शब्दार्थ - कसिणाओ - कृत्स्न - सम्पूर्ण - अखण्डित, ओसहीओ - . औषधियाँ - चावल, गेहूँ आदि अन्न या धान्य, आहारेइ - आहार करता है - खाता है या सेवन करता है। भावार्थ - १९. जो भिक्षु चावल, गेहूँ आदि सम्पूर्ण - अखण्डित अन्न का आहार करता है या आहार करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - कृत्स्न शब्द समग्र, समस्त, संपूर्ण या अखण्डित का वाचक है। जो धान्य के दाने टूटे हुए, दले हुए नहीं होते वे कृत्स्न या अखण्डित कहे जाते हैं। कृत्स्न के द्रव्यतः - द्रव्यापेक्षया तथा भावतः - भावापेक्षया दो भेद प्रतिपादित हुए हैं। द्रव्यतः का अर्थ द्रव्य रूप से अखण्डित है। भावतः का अर्थ भाव रूप से सचित्त है। ओसहीओ (औषधि) शब्द सामान्यतः जड़ी-बूंटी का वाचक है, जो विभिन्न रोगों की चिकित्सा में उपयोग में ली जाती है अथवा जिनसे निर्मित दवाईयाँ रुग्णावस्था में सेवन की जाती हैं। औषधि का एक अर्थ 'वनस्पति' है। वनस्पति के अन्तर्गत समस्त पेड़, पौधे, बेलें आदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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