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________________ चतुर्थ उद्देशक - राजा आदि को स्वसहयोगापेक्षी बनाने का प्रायश्चित्त ८९ अपने प्रभाव का अहसास हो जाता है तब उसके संयमानुगत विशुद्ध परिणामों की धारा सर्वथा निर्मल नहीं रह पाती। ___ राजा आदि को स्वसहयोगापेक्षी बनाने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू रायं अत्थीकरेइ अत्थीकरेंतं वा साइजइ।। १३॥ जे भिक्खू रायारक्खियं अत्थीकरेइ अत्थीकरेंतं वा साइज्जइ॥ १४॥ जे भिक्खूणगरारक्खियं अत्थीकरेइ अत्थीकरेंतं वा साइजइ॥१५॥ जे भिक्खू णिगमारक्खियं अत्थीकरेइ अत्थीकरेंतं वा साइजइ॥ १६॥ जे भिक्खू देसारक्खियं अत्थीकरेइ अत्थीकरेंतं वा साइज्जइ॥ १७॥ जे भिक्खू सव्वारक्खियं अत्थीकरेइ अत्थीकरेंतं वा साइजइ॥ १८॥ कठिन शब्दार्थ - अत्थीकरेइ - अर्थी - स्वसहयोगापेक्षी बनाता है। भावार्थ - १३. जो भिक्षु राजा को अपना अर्थी - सहयोगापेक्षी बनाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। .. .१४. जो भिक्षु राजा के अंगरक्षक को अपना सहयोगापेक्षी बनाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। १५. जो भिक्षु नगररक्षक को अपना सहयोगापेक्षी बनाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ___ १६. जो भिक्षु निगमरक्षक को अपनों सहयोगापेक्षी बनाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। . १७. जो भिक्षु देशरक्षक को अपना सहयोगापेक्षी बनाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। १८. जो भिक्षु सर्वरक्षक को अपना सहयोगापेक्षी बनाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ऐसा करने वाले को लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - अर्थ का अभिप्राय प्रयोजन है। अर्थ से ही अर्थीकरण शब्द बना है। अत्थीकरेइ (अर्थीकरोति) उसी का वर्तमानकाल द्योतक लट्लकार का प्रथम पुरुष के एकवचन का रूप है। अर्थीकरण का तात्पर्य ऐसी मानसिकता उत्पन्न करना है, जिससे व्यक्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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