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________________ निशीथ सूत्र जे भिक्खू देसारक्खियं अच्चीकरेइ अच्चीकरेंतं वा साइजइ॥११॥ जे भिक्खू सव्वारक्खियं अच्चीकरेइ अच्चीकरेंतं वा साइजइ॥ १२॥ कठिन शब्दार्थ - अच्चीकरेइ - शौर्य, औदार्य आदि गुण वर्णन द्वारा प्रशंसा करता है। 'भावार्थ - ७. जो भिक्षु राजा की प्रशंसा करता है - कीर्तिगान करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ८. जो भिक्षु राजा के अंगरक्षक की प्रशंसा - श्लाघा करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। .. ९. जो भिक्षु नगररक्षक की प्रशंसा - बड़ाई करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। .. १०. जो भिक्षु निगमरक्षक की प्रशंसा करता है - बड़प्पन का बखान करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ११. जो भिक्षु देशरक्षक की प्रशंसा - यशोगाथा वर्णित करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। " ___ १२. जो भिक्षु सर्वरक्षक की प्रशंसा - गुणकीर्तन करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ऐसा करने वाले को लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। - विवेचन - भिक्षु समदर्शी होता है। वह तो सदा साधनानिरत रहता है। उसका लोगों से आसक्तिपूर्ण या घनिष्ट संपर्क नहीं होता। ऐसा होना उचित एवं लाभप्रद भी नहीं, प्रत्युत हानिप्रद है। संयममय जीवन के अनन्य उपकरणभूत शरीर के निर्वाह हेतु श्रद्धालुजनों से शुद्ध एषणीय भिक्षा प्राप्त करना एवं धार्मिक उपदेश द्वारा उन्हें अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देना है। भिक्षु का इतना मात्र गृहस्थों के साथ संबंध है। भिक्षा जैसी भी प्राप्त हो उसी में वह सदा संतुष्ट रहता है। इसलिए तथाकथित बड़े लोगों को प्रसन्न करने, अपने अनुकूल बनाने तथा प्रभावित करने की उसे जरा भी आवश्यकता नहीं होती। __राजा-रंक, बड़े-छोटे, धनी-निर्धन इत्यादि की भेदरेखा उसके लिए कोई विशेष महत्त्व नहीं रखती। यही कारण है कि इन सूत्रों में राजा आदि को वश में करना - प्रभावित करना, अनुकूल बनाना प्रायश्चित्त योग्य कहा गया है। जैसा पिछले सूत्रों में विवेचित हुआ है, इन तथाकथित बड़े लोगों के अनुकूल होने से . साधु के संयममय जीवन में कोई मदद नहीं मिलती, बाधा ही होती है। क्योंकि जब साधु को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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