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________________ समवाय ९२ २६३ ४. वर्णवाद (गुण-गान) करना, ये चालू कर्त्तव्य उक्त पन्द्रह पद वालों के करने पर (१५४४-६०) साठ भेद हो जाते हैं। सात प्रकार का औपचारिक विनय कहा गया है - १. अभ्यासन-वैयावृत्य के योग्य व्यक्ति के पास बैठना । - २. छन्दोऽनुवर्तन - उसके अभिप्राय के अनुकूल कार्य करना । ३. कृतप्रतिकृति - 'प्रसन्न हुए आचार्य हमें सूत्रादि देंगे' इस भाव से उनको आहारादि देना। ४. कारितनिमित्तकरण - पढ़े हुए शास्त्र पदों का विशेष रूप से विनय करना और उनके अर्थ का अनुष्ठान करना। ५. दुःख से पीड़ित की गवेषणा करना । ६. देश-काल को जान कर तदनुकूल वैयावृत्य करना । ७. रोगी के स्वास्थ्य के अनुकूल अनुमति देना । पांच प्रकार के आचारों के आचरण कराने वाले आचार्य पांच प्रकार के होते हैं। उनके सिवाय उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु और मनोज्ञ इनकी वैयावृत्य करने से वैयावृत्य के १४ भेद होते हैं। . इस प्रकार शुश्रूषा विनय के १० भेद, तीर्थङ्करादि के अनाशातनादि ६० भेद, औपचारिक विनय के ७ भेद और आचार्य आदि के वैयावृत्य के १४ भेद मिलाने पर (१०+६०+७+१४=९१) इक्यानवें भेद हो जाते हैं। . . बाणवां समवाय बाणउड पडिमाओ पण्णत्ताओ। थेरे णं इंदभूइ बाणउई वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। मंदरस्स णं पव्वयस्स बहुमज्झदेसभागाओ गोथूभस्स आवास पव्वयस्स पच्चथिमिल्ले चरमंते एस णं बाणउइं जोयण सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते एवं चउण्हं वि आवासपव्वयाणं ॥ ९२ ॥ कठिन शब्दार्थ - बाणउड़ - ९२, चउण्हं वि - चारों, आवास पव्वयाणं - आवास पर्वतों का। भावार्थ - ९२ प्रतिमाएं कही गई हैं। दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र की नियुक्ति में इनका कथन किया गया है - १. समाधि प्रतिमा,२. उपधान प्रतिमा, ३. विवेक प्रतिमा, ४. प्रतिसंलीनता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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