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________________ समवाय ९१ २६१ नब्बेवां समवाय सीयले णं अरहा णउइं धणूई उड्डे उच्चत्तेणं होत्था। अजियस्स णं अरहओ णउई गणा, णउई गणहरा होत्था एवं संतिस्स वि । सयंभूस्स णं वासुदेवस्स णउई. वासाइं विजए होत्था। सव्वेसिं णं वट्टवेयड्वपव्वयाणं उवरिल्लाओ सिहरतलाओ सोगंधियकंडस्स हेट्ठिल्ले चरमंते एस णं णउइं जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥९० ॥ . कठिन शब्दार्थ - णउई धणूई - ९० धनुष, वट्टवेयड्डपव्वयाणं - वृत्त वैताढ्य पर्वतों के, उवरिल्लाओ सिहरतलाओ - ऊपर के शिखर से । ... भावार्थ - दसवें तीर्थङ्कर श्री शीतलनाथ स्वामी का शरीर ९० धनुष ऊंचा था। दूसरे तीर्थङ्कर श्री अजितनाथ स्वामी के ९० गण और ९० गणधर थे। इसी प्रकार सोहलवें तीर्थङ्कर श्रीशान्तिनाथ स्वामी के भी ९० गण और ९० गणधर थे। तीसरे वासुदेव श्री स्वयंभू को तीन खण्ड पृथ्वी का विजय करने में ९० वर्ष लगे थे। सब वृत्त वैताढ्य पर्वतों के ऊपर के शिखर से सौगन्धिक काण्ड के नीचे के चरमान्त तक ९० सौ योजन का अन्तर कहा गया है ॥ ९० ॥. विवेचन - आवश्यक सूत्र में तो श्री अजितनाथ स्वामी के ९५ गण और ९५ गणधर थे तथा श्री शान्तिनाथ स्वामी के ३६ गणधर और ३६ गण थे, ऐसा बताया है सो मतान्तर मालूम होता है। रत्नप्रभा पृथ्वी के समतल से सौगन्धिक काण्ड ८००० योजन नीचे और सभी वृत्तवैताढय पर्वत १००० योजन ऊँचे हैं। इस प्रकार दोनों का अन्तर ९००० योजन सिद्ध हो जाता है इकानवां समवाय एकाणउइ परवेयावच्च कम्मपडिमाओ पण्णत्ताओ। कालोए णं समुहे एकाणउइ जोयण सयसहस्साइं साहियाइं परिक्खेवेणं पण्णत्ते। कुंथुस्स णं अरहओ एकाणउइ आहोहियसया होत्था। आउयगोयवज्जाणं छण्हं कम्मपयडीणं एकाणउइ उत्तरपयडीओ पण्णत्ताओ॥९१ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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